ओबामा के हंसगुल्ले

Bill Clinton, Joe Biden and Barack Obama go into a bar. Bill tells the barkeeper, "I'll have a B and C." Obama whispers, "What is a B and C?" "That's a bourbon and Coke," Clinton answers. Then Biden orders, "I'll have a G and T." Obama again whispers, "What's a G and T?" "A gin and tonic," Joe replies. Obama wants to seem like he's one of the guys so he tells the barkeeper, "I'll have a 15." Now it's the bartender's turn to ask, "What's a 15?" Obama says, "A 7 and 7."



Exhausted and ill from the effort of enacting the Obama healthcare plan, an elderly Senator goes to the doctor. Doctor says, "I have bad news, good news, and bad news, Senator. The bad news is that you only have six months to live. But the good news is that there’s an operation that is 100% successful in curing this illness." "That sounds great, Doctor," says the Senator, "but what’s the other bad news?" The Doctor replies, "The Department of Health and Human Services says the first available slot is seven months from today."Barack Obama, Sarah Palin and Joe Biden were trapped on a desert island with no hope of rescue, so Obama pulled a magic lamp out of his turban and rubbed it until a Genie appeared, The Genie announced that he would grant three wishes; one wish for each of the castaways. Obama immediately wished to be magically transported to Chicago and he was gone in a puff of smoke. Palin asked to go to Alaska and she was instantly whisked away. Biden began to cry and said, "Now I'm all alone. I wish I had my two friends back!



"डॉ. संता: बंता जी, आपको चोट कहां लगी है, क्या आंख के पास? बंता: जी नहीं, रेलवे स्टेशन के पास।

- वंदना भैरम, बरघाट (मप्र)

संता आपबीती बता रहा था: यार, बंदर बड़े नकलची होते हैं। बंता: वह कैसे? संता: कल बालकनी में आए बंदर को मैंने ठेंगा दिखाया, तो उसने भी दिखाया। मैं उसे मारने दौड़ा, तो उसने भी मेरी तरफ़ छलांग लगा दी।

बंता: फिर क्या हुआ? संता: फिर बंदर बेचारा पसोपेश में पड़ गया। वह पैंट तो पहनता नहीं, फिर गीली कैसे करता?

- अतुल केकरे, इंदौर (मप्र)

संता: कितने प्रतिशत भारतीयों को लगता है कि सलमान ख़ान कैटरीना कैफ़ से शादी करेंगे? बंता: 10 प्रतिशत को।

संता: और बाक़ी 90 प्रतिशत भारतीय? बंता: वे ख़ुद कैटरीना से शादी करना चाहते हैं।

- शिवेंद्र बहादुर, डौंडी लोहारा (छग)

संता आपबीती बता रहा था: यार, बंदर बड़े नकलची होते हैं। बंता: वह कैसे? संता: कल बालकनी में आए बंदर को मैंने ठेंगा दिखाया, तो उसने भी दिखाया। मैं उसे मारने दौड़ा, तो उसने भी मेरी तरफ़ छलांग लगा दी।

बंता: फिर क्या हुआ? संता: फिर बंदर बेचारा पसोपेश में पड़ गया। वह पैंट तो पहनता नहीं, फिर गीली कैसे करता?

- अतुल केकरे, इंदौर (मप्र)

संता (बंता से)- यार बंता मेरी मंगनी टूटने वाली है। प्रीतो ने मेरे साथ विवाह करने से इंकार कर दिया। बंता (संता से)- क्या तुमने अपने करोड़पति चाचा के बारे में नहीं बताया? संता- बताया तो था.. अब वह मेरी चाची है। महॆन्द्र् पुणॆ(महा)

महेन्द्र

मैडम- क्या आप मुझे राजा राम मोहन राय के बारे में कुछ बता सकते हैं। छात्रा - हाँ टीचर, वे चारों पक्के दोस्त थे।

महेन्द्र


रहीम के दोहे-प्यार के दुर्गम मार्ग पर सभी नहीं चल सकते


प्रेम पंथ ऐसी कठिन, सब कोउ निबहत नाहिं

रहिमन मैन-तुरगि बढि, चलियो पावक माहिं

कविवर रहीम कहते हैं कि प्रेम का मार्ग ऐसा दुर्गम हे कि सब लोग इस पर नहीं चल सकते। इसमें वासना के घोड़े पर सवाल होकर आग के बीच से गुजरना होता है।

फरजी सह न ह्म सकै गति टेढ़ी तासीर

रहिमन सीधे चालसौं, प्यादा होत वजीर

कविवर रहीम कहते हैं कि प्रेम में कभी भी टेढ़ी चाल नहीं चली जाती। जिस तरह शतरंज के खेल में पैदल सीधी चलकर वजीर बन जाता है वैसे ही अगर किसी व्यक्ति से सीधा और सरल व्यवहार किया जाये तो उसका दिल जीता जा सकता है।

आज के संदर्भ में व्याख्या-आजकल जिस तरह सब जगह प्रेम का गुणगान होता है वह केवल बाजार की ही देन है जो युवक-युवतियों को आकर्षित करने तक ही केंद्रित है। उसे प्रेम में केवल वासना है और कुछ नहीं है। सच्चा प्रेम किसी से कुछ मांगता नहीं है बल्कि उसमें त्याग किया जाता है। सच्चे प्रेम पर चलना हर किसी के बस की बात नहीं है। प्रेम में कुछ पाने का आकर्षण होतो वह प्रेम कहां रह जाता है। सच तो यह है कि लोग प्रेम का दिखावा करते हैं पर उनके मन में लालच और लोभ भरा रहता है। लोग दूसरे का प्यार पाने के लिये चालाकियां करते हैं जो कि एक धोखा होता है।

आजकल हम देख रहे हैं कि प्रेम के नाम पर अनेक लोग धोखे का शिकार हो रहे हैं। दरअसल फिल्म और टीवी चैनलों पर आज के युवक और युवतियों की यौन भावनाओं को भड़काया जा रहा है। अनेक ऐसी बेसिर पैर की कहानियां दिखाई जाती हैं जिनका यथार्थ के धरातल पर कोई आधार नहीं मिलता। केवल शादी तक तक ही लिखी गयी कहानियां गृहस्थी के यथार्थो का विस्तार नहीं दिखाती। इनको देखकर युवक युवतियां प्यार की कल्पना तो करते हैं पर उसके बाद का सच उनके सामने तभी आता है जब वह गल्तियां कर चुके होते हैं।

इतना ही नहीं कई प्रेम कहानियों में तो लड़कों को छल कपट से लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाते हुए दिखाया जाता है। इन कहानियों के दृश्य देखकर अनेक युवक युवतियां भ्रमित होकर उसी राह पर चलते है। इस तरह के प्रचार को समझने की जरूरत है।



मीरा के अनमोल पद

बसो म्हारे नैनन में नंदलाल ।

मोर मुगट मकराक्रत कुंडल, अरूण तिलक सोहै भाल ।

मोहनी मूरति सॉवरि सूरति नैना बने बिसाल,

अवरसुवारस मुरली राजति डर बैजंती माल ।

मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल ।

भावार्थ - है नंद के लाल कृष्ण ! आप मेरी आंखो में निवास करो । आपके मोर पंख का मुकुट, कानो में कुण्डल और मस्तक पर सुनहरी तिलक सोभायमान है । आपके नयन विशाल है । तथा आपकी सांवली और मन को मोहने वाली छबि है। होठों पर सुधा रस :अमृतः बरसाने वाली बांसुरी है और गले में वैजयंती माला :विष्णु की माला विशेष हैः मीरा के भगवान संतो को सुख देने वाले और भक्तों के प्रिय गोपाल है।

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मैं तो गिरधर के घर जाउं ।

गिरधर म्हारों सांचो प्रीतम, देखत रूप लुभाउं ।

रैण पड़ै तब ही उठि जाउं, भोर भये उठि आउं ।

रैण - दिनांवा के संग खेतूं, ज्यूं - त्यूं ताहि रिझाउं।

जो पहिरावै सोई पहरूँ, जो देवे सो खाउं।

मेरी उण की प्रीत पुराणी उण, बिन पल न रहाउं ।

जहां बैठावे तित ही बैठू, बैचे तो बिक जाउं ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बार - बार बलि जाउं ।

भावार्थ - मीरा कहती है कि मैं तो अपने प्रियतम गिरधर के भावरूपी घर जाउंगी । जिनके रूप को देखकर मैं लुभा जाती हूं । मैं रात्रि होते ही नित्य उनके पास चली जाउंगी तथा सवेरा होते ही लौट आउंगी । मैं रात - दिन उनके साथ क्रीडा करूंगी और हर प्रकार से उन्हें प्रसन्न रखूंगी । वे जो पहनायेंगे वही पहन लूंगी और जो देंगे वही खा लूंगी । मैं उनके बिना एक पल भी नहीं जी सकती क्योंकि मेरी और उनकी प्रीत प्यार, जन्म - जन्मांतर की है वे जहां बैठायेंगे बैठ जाउंगी और उनके लिए कोई भी त्याग करूंगी । मेरे आराध्य वे ही गिरधरलाल है जिन पर मैं बारम्बार बलिहारी हूं ।

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गली तो चारों बंद हुई, मैं हरि से मिलुं कैसे जाय ?

उंची - नीची राह रपटणी, पांव नहीं ठहराय ।

सोच - सोच पग धरूँ जतन से बार - बार डिग जाय ।

पिया दुर पंथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय ।

कोस - कोस पहरा बैठया, पैड़ - पैड बटराय ।

है विधना ! कैसी रच दीन्ही, दूर बस्यों घर बार ।

जुगन - जुगन से बिछड़ी मीरा, घर लीन्हा मैं पाय ।

मीरा के प्रभु गिरधरनागर ! सत्‌गुरू दिया बताय ।

भावार्थ - प्रभु मिलन का मार्ग प्रेम का मार्ग बडा कठिन है बाधाओं से भरा है । चतुर्दिक कोई राह नहीं सूझती, फिर भला में हरि से जाकर कैसे मिलूँ ? उंची नीची राह फिसलन भरी है जहां पांव नही ठहरते । मैं सोच समझकर बड़ी सावधानी से पैर रखती हूं पर फिर भी बार - बार डिग जाता है । मेरे पिया का महल उंचा - नीच है, जहां हमसे चढ ा नहीं जाता । उधर पिया दूर है तथा उन तक जाने का मार्ग सकरा है, ध्यान की नाव मोहदि षट्‌ विकारों की लहरों से बारम्बार झकोले खा रही है । कोस - कोस पर पहरे बैठे हुए है तथा पद - पद पर लुटेरे घात लगाये बैठे है। यह विधाता ! तुमने यह प्रेम मार्ग कैसा संकटापन्न बनाया है । मेरे घर - बार बहुत दुर बसा हुआ है । है मीरा के आराध्य गिरधरलाल ! यह आपकी असीम अनुकम्पा है, जो युग - युग से बिछुड़ी मीरा ने अपना घर पा लिया है अपने परम प्राप्य तक पहुंच गई है । सतगुरू :ईश्वरः ने ही यह मार्ग बताया है।

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म्हानै चाकर राखो जी गिरधर, म्हानै चाकर राखोजी ।

चाकर रहॅंसू बाग लगासूं, नित उठ दरसण पासू।

बिन्द्राबन की कुंज गलिन में, तेरी लीला गासू ।

चाकरी में दरसणा पाउ, पहर कसुंभी सारी ।

आधी रात प्रभु दरसण दीज्यों, जमनाजी ने तीरा ।

मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हिवड़ो घणो अधीरा ।

भावार्थ - मीरा प्रभु से स्वयं को सेवक रखने की प्रार्थना करते हुए कहती है कि है गिरधर लाल मुझे सेवक रखो, आपकी सेवा में रहकर प्रेम रूपी बगीचा लगाउंगी और नित्य आपके दर्शन प्राप्त करूंगी । वृन्दावन की कंजु गलियों में आपकी लीला गाउंगी । सेवा के बदले आपके दर्शन रूपी मानदेय मिलेगा और आपके स्मरण रूपी जेब खर्च मिलेगा और भक्ति भावना रूपी जागीर अचल सम्पत्ति मुझे मिलेगी । ये तीनों ही बातें मिलने वाली है । हरि स्मरण रूपी मेढ बनाउंगी और उसके बीच - बीच क्यारियां रखूंगी तथा वहां के सरिया साडी पहनकर सांवरिया के दर्शन पाउंगी ।मीरा कहती है, है प्रभु मेरा मन आपके दर्शन के लिए बहुत अधीर है । आप मुझे यमुना के किनारे आधी रात को दर्शन देना ।

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मैं तो सांवरे के रंग राची ।

साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू लोक लाज तीज नाची ।

गई कुमति लई साधु की संगति भगत रूप भई सांची ।

गाय - गाय हरि के गुन निस दिन काल ब्याह सों बांची ।

उण बिन सब जग खारो लागत और बात सब काची ।

भावार्थ - मीरा कहती है कि मैं सांवरिया के रंग में रच गई हूं । लोक लज्जा छोड़कर साज - श्रृगांर और पग में घुंघरू बांधकर नाचती हूं । जब से मैंने सन्यासियों का साथ किया है तब से दुर्बुद्धि खत्म हो गई है और भगत का रूप ही सच्चा लगता है । हमेशा प्रभु के गुण गाते - गाते मैं मृत्यु रूपी सांप से बच गई हूं । भगवान के बिना सारा संसार बेकार लगता है यह बात पूर्ण सत्य है ।

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यही विधि भगति कैसे होय ?

मन की मैल हिये ते न छूटी, दियो तिलक सिर धोय ।

काम - कूकर, लोभ - डोरी, बॉंधि मोह - चंडाल ।

क्रोध - कसाई रहत घट में कैसे मिले गोपाल ?

बिलार - विषया लालची रे, ताहि भोजन देत ।

दीन - दीन है छु धा - रत से, राम - नाम न लेत ।

आप ही आप पुजाय के रे, फूले ऍंग न समात ।

अभिमान - टीला किये बहू - कहूं जल कहॉं ठहरात ?

जो हिये अन्तर की जाने, तासों कपट न बनै ।

हिरदै हरि को नाम न आवै, मुख तै मुनियां गनै ।

दासि मिरा लालगिरधर ! सहज कर वैराग ।


भावार्थ - इस तरह भक्ति कैसे हो सकती है ? मन की मलीनता तो ह्‌दय से दुर नहीं हुई नहीं और सिर धोकर तिलक लगा लिया । काम रूपी शिकारी कुत्तें को लोभ की डोरी से बांधे हुए मोह रूपी चंडाल तथा क्रोध रूपी कसाई तुम्हारे मन - प्रांगण में बसे हुए है । फिर भला गोपाल कैसे मिल सकते है ? मन रूपी विषय - वासनाओं के लालची बिलाव को तुम सदा भोजनादि से तृप्त करते रहते हो तथा दीन - दीन और संयमी होकर कभी राम का नाम लेते नहीं । आप ही अपनी पूजा करवाकर तुम फूले नहीं समाते । फलतः तुम्हें अत्यधिक उंचे टीलों पर कैसे ठहर सकता है ? यह कितने आश्चर्य की बात है कि जो ईश्वर अन्तर्यामी है, उसके आगे तुम्हारा कपट चलेगा नहीं । तुम सच्चे मन से तो कभी राम का नाम लेते नहीं और केवल मुंह से जाप करते हुए माला के मणिये फेरते रहते हो । तुम्हारी यह कपट - लीला ईश्वर से छिपी नहीं है।

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चलो मनवा जमना तीर ।

जमना का निरमल पाणी सीतल होत सरीर ।

बंसी बजावत - गावत कान्हों संग लियॉं बलवीर ।

मोर मुगट पीतांबर सोहे कुंडल झलकत हीर ।

मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरण कमल पै सिर ।

भावार्थ - मीरा अपने मन से यमुना के किनारे चलने के लिए कहती है और यमुना नदी तथा कृष्ण की विशेषताएं बयान कर रही है । यमुना के निर्मल जल से शरीर निर्मल एवं स्वच्छ हो जाता है। वहां शांति मिलती है। बलराम के साथ कृष्ण बांसुरी बजाते गाते वहां आते वे मोर मुकुट और पीताम्बर धारण किये है तथा कुण्डल में हीरे चमकते है। ऐसे है मीरा के प्रभु गिरधर नागर और उनके चरण कमलो पर मीरा न्यौछावर है ।

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पायो जी मैंने राम रतन धन पायो ।

वस्तु अमोलक दी म्हारा सत्‌गुरू, करि अपनायो ।

जनम - जनम री पूंजी पाई, जग मायं सबे खोवायो ।

खरच न खूंटे, चोर न लूटे, दिन - दिन बढ़त सवायो ।

सतरी नाव, खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो ।

मीरा के प्रभु गिरधर नागर हरख जस गायो ।

भावार्थ - मीरा राम रूपी भक्ति पाने की खुशी प्रकट करते हुये अपना शिष्य मानकर कहती है कि गुरू ने अमूल्य वस्तु भगवद्‌ भक्ति रूपी रत्न और धन कृपा करके दी है। इससे मैंने कई जन्मों की निधि प्राप्त कर ली है और सबको बॉंट रही हुं । इसको खर्चने से कम नहीं होती है तथा चोर लूट नहीं सकते है तथा यह दिन - प्रतिदिन बढ ती ही जाती है। यह तो सत्य की नाव हैं जिसके केवट सद्‌गुरू है जो भव - सागर पार करने वाली है । मीरा के इस पद को गांधीजी ने अपने जीवन में अपनाया तथा जीवन भर इससे मार्ग - दर्शन प्राप्त करते रहे ।

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माई री मैं तो लीयो गोविन्दो मोल.........

माई री मैं तो लीयो गोविन्दो मोल ।

कोई कहै छाने कोई कहै चोड़े लियो री बजंता ढोल ।

कोई कहै मंहघों कोई कहैं संहघो लियो री तराजू तोल ।

कोई कहैं कारो कोई कहै गोरो लियोरी अमोलिक मोल ।

तन का गहना सब कछ दीन्हा, दियो है बाजुबंद खोल ।

या ही फूं सब लोग जाणत है लियोरी ऑंखी खोल ।

मीरॉं कू प्रभ दर्शन दीज्यौ पूरब जनम कौ कोल ।

भावार्थ :- हे मैया ! मैंने तो गोविन्द को मोल लिया है । कोई कहता है छुप

चुप के प्रणय - व्यापार किया है कोई कहता प्रकट में किया है किन्त मैंने तो सबको

आगाह करते हुए उसे खरीदा है । कोई सस्ता बता रहा है तो कोई महंगा किन्तु

मैंने तो पलड़े में तौलकर बराबर में लिया है । कोई कहता है कृष्ण काला है कोई

कहता है गोरा है किन्त मेरे लिए तो वह अनमोल निधि है । उसके बदले में मैंने शरीर

का पूरा गहना और बाजूबंद तक छोड़ दिया है । जिसे सब लोग जानते हैं मैंने पूरी

सावधानी के साथ उस कृष्ण को अपनाया है । मीरा कहती है प्रभ ! पूर्व जन्म के वचन

अनुसार आप मझे दर्शन दीजिये ।

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रोबोट


रोबोट होते है बड़े दिमाग के ,


रोबोट होते हैं अमर....


ये मानव क्या जाने,


रोबोट कब मिलजुल जाये .....


मानव को बना ले अपना चेला,


मानव ने रोबोट को इतनी दे दी हैं शक्ति .....


रोबोट हो हैं गए शक्तिशाली,


रोबोट किसी से नहीं डरते हैं.....


रोबोट मोबाइल से जब बाते करते ,


मानव रोबोट को देखते रह जाते....


लेख़क : रामसिंह

स्वामी विवेकान्द ,कानपुर






रोबोट की कविता


वेद प्रकाश ‘वेद’


कमाल हो जाएगा


तारकोल की काली सड़कों का रंग


लाल हो जाएगा


छिपकली की कटी पूँछ की तरह


कटे हुए धड़


काली सड़क के


लाल ‘स्टेज’ पर


‘ऑर्केस्ट्रा’ करेंगे


और अपने उन्माद पर पहुँचकर


‘ऑर्केस्ट्रा’ की धुनें


‘प्यानो’ के विस्फोट के बाद


एकदम शांत हो जाएंगी


और एकदम शांत हो जाएगा


सब कुछ


कर्फ्यू की तरह


जिसमें रोबोट पहरा देंगे


धरती पर रह जाएंगे


आदमी के बनाए हुए रोबोट


रोबोट


आदमी का निर्माण करेंगे


आदमी को


इतिहास लिखने का आदेश देंगे


आप कविता लिखेंगे


आदमी अपने इतिहास में लिखेगा-


हमारे पूर्वज रोबोट थे


और रोबोट की कविता कहेगी-


आदमी


फिर दौड़ में मस्त हो जाएगा


और एक दिन


ये ऐलान करेगा-


हमने लाल स्टेज तैयार कर लिया है


आओ


ऑर्केस्ट्रा की तैयारी करें!