Sunday, February 6, 2011

मक्खन फैंको नमक पर थूंको

प्रधानमंत्री के दिल के डॉक्टर संपत कुमार ने रोग से बचने के लिए हिन्दी में एक कविता लिखी...........





यह है हमारी सलाह, इसमे है तुम्हारा भला
चालीस के बाद छोड़ो मीठा स्वाद,
मक्खन फैंको नमक पर थूको,
सांस लेकर जोर से फूँको
यह है हमारी सलाह इसमें है तुम्हारा भला.......


सैर करने निकला तो सेहत का होगा भला
लंबा गहरा सांस भरना बल्ड प्रेशर को नीचे ला
यह है हमारी सलाह इसमें है तुम्हारा भला.......
चावल, चीनी छोड़ो, बुरी आदतों को तोड़ो,
जीवन अपना सुधारो वरना अस्पताल पधारो
यह है हमारी सलाह इसमें है तुम्हारा भला.......


सालों बाद दिल पर पड़ेगा बोझ
डाक्टर करेगा दिल की खोज
निकलेगी अन्दर से चिकनाई
यह है हमारी सलाह इसमें है तुम्हारा भला.......


जीवन एक लंबा सफर है अभी तुम्हारा दोपहर है
शाम को ताजगी जरूरी है तंदरूस्त रहना जरूरी है।
यह है हमारी सलाह इसमें है तुम्हारा भला.......





Thursday, February 3, 2011

स्त्री-स्वास्थ्य का अनदेखा अनछुआ पर अहम पहलू - लैंगिक विकार

प्रस्तावना


यदि नारियां ऐसा सोचती हैं कि ऐलोपेथी के चिकित्सकों ने उनकी लैंगिक समस्याओं को अनदेखा किया है, उनके लैंगिक कष्टों के निवारण हेतु समुचित अनुसंधान नहीं किये हैं तो वे सही हैं। सचमुच हमें स्त्रियों के लैंगिक विकारों की बहुत ही सतही और ऊपरी जानकारी है। हम उनकी अधिकतर समस्याओं को कभी भूत प्रेत की छाया तो कभी उसकी बदचलनी का लक्षण या कभी मनोवैज्ञानिक मान कर उन्हें ज़हरीली दवायें खिलाते रहे, झाड़ फूँक करते रहे, प्रताड़ित करते रहे, जलील करते रहे, त्यागते रहे और वो अबला जलती रही, कुढ़ती रही, घुटती रही, रोती रही, सुलगती रही, सिसकती रही, सहती रही..............

लेकिन अब समय बदल रहा है। यह सदी नारियों की है। अब जहाँ नारियाँ स्वस्थ, सुखी और स्वतंत्र रहेंगी, वही समाज सभ्य माना जायेगा। अब शोधकर्ताओं ने उनकी¬ समस्याओं पर संजीदगी से शोध शुरू कर दी है। देर से ही सही आखिरकार चिकित्सकों ने नारियों की समस्याओं के महत्व को समझा तो है। ये स्त्रियों के लिये आशा की किरण है। 1999 में अमेरिकन मेडीकल एसोसियेशन के जर्नल (JAMA) में प्रकाशित लेख के अनुसार 18 से 59 वर्ष के पुरुषों और स्त्रियों पर सर्वेक्षण किये गये और 43% स्त्रियों और 31% पुरुषों में कोई न कोई लैंगिक विकार पाये गये। 43% का आंकड़ा बहुत बड़ा है जो दर्शाता है कि समस्या कितनी गंभीर है।

यौन उत्तेजना चक्र (Female Sexual Response Cycle)

स्त्रियों के यौन रोगों को भली-भांति समझने के लिए हमें स्त्रियों के प्रजनन तंत्र की संरचना और यौन उत्तेजना चक्र को ठीक से समझना होगा। यौन उत्तेजना चक्र को हम चार अवस्थाओं में बांट सकते हैं।

उत्तेजना (Excitement) पहली अवस्था है जो स्पर्श, दर्शन, श्रवण, आलिंगन, चुंबन या अन्य अनुभूति से शुरू होती है। इस अवस्था में कई भावनात्मक और शारीरिक परिवर्तन जैसे योनि स्नेहन या Lubrication (योनि का बर्थोलिन तथा अन्य ग्रंथियों के स्राव से नहा जाना), जननेन्द्रियों में रक्त-संचार बड़ी तेजी से बढ़ता है। संभोग भी शरीर पर एक प्रकार का भौतिक और भावनात्मक आघात ही है और इसके प्रत्युत्तर में रक्तचाप व हृदयगति बढ़ जाती है और सांस तेज चलने लगती है। साथ ही भगशिश्न या Clitoris (यह स्त्रियों में शिश्न का प्रतिरूप माना जाता है ) में रक्त का संचय बढ़ जाने से यह बड़ा दिखाई देने लगता है, योनि सूजन तथा फैलाव के कारण बड़ी और लंबी हो जाती है। स्तन बड़े हो जाते हैं और स्तनाग्र तन कर कड़े हो जाते हैं। उपरोक्त में से कई परिवर्तन अतिशीघ्रता से होते हैं जैसे यौनउत्तेजना के 15 सेकण्ड बाद ही रक्त संचय बढ़ने से योनि में पर्याप्त गीलापन आ जाता है और गर्भाशय थोड़ा बड़ा हो कर अपनी स्थिति बदल लेता है। रक्त के संचय से भगोष्ठ, भगशिश्न, योनिमुख आदि की त्वचा में लालिमा आ जाती है।

दूसरी अवस्था उत्तेजना की पराकाष्ठा (Plateau) है । यह उत्तेजना की ही अगली स्थिति है जिसमें योनि (Vagina), भगशिश्न (Clitoris), भगोष्ठ (Labia) आदि में रक्त का संचय अधिकतम सीमा पर पहुँच जाता है, जैसे जैसे उत्तेजना बढ़ती जाती है योनि की सूजन तथा फैलाव, हृदयगति, पेशियों का तनाव बढ़ता जाता है। स्तन और बड़े हो जाते हैं, स्तनाग्रों (Nipples) का कड़ापन तनिक और बढ़ जाता है और गर्भाशय ज्यादा अंदर धंस जाता है। लेकिन ये परिवर्तन अपेक्षाकृत धीमी गति से होते हैं।

तीसरी अवस्था चरम-आनंद (Orgasm) की है जिसमें योनि, उदर और गुदा की पेशियों का क्रमबद्ध लहर की लय में संकुचन होता है और प्रचंड आनंद की अनुभूति होती है। यह अवस्था अतितीव्र पर क्षणिक होती है। कई बार स्त्री को चरम-आनंद की अनुभूति भगशिश्न के उकसाव से होती है। कई स्त्रियों को बिना भगशिश्न को सहलाये चरम-आनंद की अनुभूति होती ही नहीं है। कुछ स्त्रियों को संभोग में गर्भाशय की ग्रीवा (Cervix) पर आघात होने पर गहरे चरम-आनंद की अनुभूति होती है। दूसरी ओर कुछ स्त्रियों को गर्भाशय की ग्रीवा पर आघात अप्रिय लगता है और संभोग के बाद भी एंठन रहती है। पुरुषों की भांति स्त्रियां चरम-आनंद के बाद भी पूर्णतः शिथिल नहीं पड़ती, और यदि उत्तेजना या संभोग जारी रहे तो स्त्रियां एक के बाद दूसरा फिर तीसरा इस तरह कई बार चरम-आनंद प्राप्त करती हैं। पहले चरम-आनंद के बाद अक्सर भगशिश्न की संवेदना और बढ़ जाती है और दबाव या घर्षण से दर्द भी होता है।

चरम-आनंद के पश्चात अंतिम अवस्था समापन (Resolution) है जिसमें योनि, भगशिश्न, भगोष्ट आदि में एकत्रित रक्त वापस लौट जाता है, स्तन व स्तनाग्र सामान्य अवस्था में आ जाते हैं और हृदयगति, रक्तचाप और श्वसन सामान्य हो जाता है। यानी सब कुछ पूर्व अवस्था में आ जाता है।

सभी स्त्रियों में उत्तेजना चक्र का अनुभव अलग-अलग तरीके से होता है, जैसे कुछ स्त्रियां उत्तेजना की अवस्था से बहुत जल्दी चरम-आनंद प्राप्त कर लेती हैं। दूसरी ओर कई स्त्रियां सामान्य अवस्था में आने के पहले कई बार उत्तेजना की पराकाष्ठा और चरम-आनंद की अवस्था में आगे-पीछे होती रहती हैं और कई बार चरम-आनंद प्राप्त करती हैं।

विभिन्न लैंगिक विकार

सन् 1999 में अमेरिकन फाउन्डेशन ऑफ यूरोलोजीकल डिजीज़ ने स्त्रियों के सेक्स रोगों का नये सिरे से वर्गीकरण किया है, इस प्रकार है।

महिला अधःसक्रियता यौन इच्छा विकार (Hypoactive Sexual Desire Disorder)

इस विकार में स्त्री को अक्सर यौन विचार नहीं आते और संभोग की इच्छा भी कभी नहीं होती या कभी कभार ही होती है। इस रोग में स्त्री दुखी या कुंठित रहती ही है और अपने साथी से संबन्ध भी प्रभावित होते हैं। कुछ स्त्रियों में यह विकार अस्थाई होता है और कुछ समय बाद ठीक हो जाता है। इसकी व्यापकता दर 10% से 41% आंकी गई है।

महिला यौन घ्रणा विकार (Sexual Adversion Disorder)

इस विकार में स्त्री को यौन-संबन्ध तनिक भी रुचिकर नहीं लगता है। महिला संभोग से बचने के लिए हर संभव प्रयत्न करती है। यदि उसका साथी शारीरिक संबन्ध बनाने की कौशिश करता है तो वह तनाव में आ जाती है, डर जाती है, उसका जी घबराने लगता है, दिल धड़कने लगता है, यहाँ तक कि वह बेहोश भी हो जाती है। साथी से सामना न हो इसलिए वह जल्दी सो जाती है, स्वयं को सामाजिक या अन्य कार्यों में व्यस्त रखती है या फिर किसी भी ऊंच-नीच की परवाह किये बिना घर तक छोड़ देती है।
 
महिला कामोत्तेजना विकार (Sexual Arousal Disorder)

इस स्थिति में स्त्री को वांछित यौन उत्तेजना नहीं होती है या उत्तेजना पर्याप्त अवधि तक नहीं बनी रहती है। फलस्वरूप न योनि, भगशिश्न, भगोष्ठ आदि में पर्याप्त रक्त का संचय होता है और न ही योनि में रसों का पर्याप्त स्राव तथा सूजन होता है या अन्य शारीरिक परिवर्तन होता हैं। इससे स्त्री को ग्लानि होती है, साथी से मधुरता कम होती है। इसका कारण कोई मानसिक रोग या दवा नहीं है। इस रोग में स्त्रियां संभोग का पूरा आनंद तो लेती हैं पर वे दुखी रहती हैं कि उन्हें यौन उत्तेजना नहीं हुई और योनि में संभोग के लिए आवश्यक रसों का स्राव नहीं हो सका। इस विकार की व्यापकता दर भी 6% से 21% है।

 

महिला चरम-आनंद विकार (Orgasmic Disorder)

यदि स्त्री को संभोग करने पर यौन उत्तेजना के बाद चरम-आनंद की प्राप्ति कभी भी या अक्सर न होती हो या बड़ी कठिनाई और बड़े विलंब से होती हो तो उसे महिला चरम-आनंद विकार कहते हैं। ऐसा किसी मानसिक रोग या दवा के कारण नहीं होता है। चरम-आनंद न मिलने से स्त्री को सदमा होता है। इसकी दर 5% से 42% है। लगभग 5% स्त्रियों को जीवन में कभी चरम-आनंद मिलता ही नहीं है।

लैंगिक दर्द विकार (Sexual Pain Disorders)

कष्टप्रद संभोग (Dysperunia) में संभोग करते समय कभी कभी या निरंतर दर्द होता है।
योनि आकर्ष (Vaginismus) में हमेशा या कभी कभार जैसे ही योनि में शिश्न का प्रवेश होता है योनि के अग्र भाग में अचानक संकुचन होने के कारण शिश्न का प्रवेश कष्टप्रद हो जाता है, जिससे स्त्री को भी काफी शारीरिक और मानसिक वेदना होती है। इसकी दर भी 3% से 46% है।

कष्टप्रद संभोग भौतिक विकारों जैसे योनि-प्रघाण शोथ (Vestibulitis), योनि क्षय (Vaginal Atrophy) या संक्रमण या मनोवैज्ञानिक कारणों से भी हो सकता है। योनि आकर्ष योनि में शिश्न के कष्टदायक प्रवेश की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप या मनोवैज्ञानिक कारणों से हो सकता है।

महिला सेक्स विकार के कारण

रक्त संचार संबन्धी रोग

उच्च रक्तचाप, कॉलेस्ट्रोल ज्यादा होना, डॉयबिटीज, धूम्रपान और हृदयरोग में स्त्रियों को सेक्स संबन्धी विकार होते ही हैं। पेल्विस या जनन्न्द्रियों में चोट लगना, पेल्विस की हड्डी टूट जाना, जननेन्द्रियों में कोई शल्यक्रिया या अधिक सायकिल चलाने से योनि तथा भगशिश्न में रक्त प्रवाह कम हो सकता है जिससे सेक्स विकार हो सकते हैं।

नाड़ी रोग

जो नाड़ी रोग पुरूषों में स्तंभन दोष पैदा करते हैं वे स्त्रियों में भी सेक्स विकार पैदा करते हैं। मेरुरज्जु आघात (Spinal cord Injury) या डायबिटीज समेत नाड़ी रोग स्त्रियों में सेक्स संबंधी दोष पैदा कर सकते हैं। उन स्त्रियों को चरम-आनंद की प्राप्ति बहुत मुश्किल होती है जिन्हें मेरुरज्जु में चोट लगी हो।

हार्मोन

हाइपोथेलेमिक पिट्युइटरी एक्सिस दोष, औषधि या शल्यक्रिया द्वारा वंध्यकरण (Castration), रजोनिवृत्ति, प्रिमेच्योर ओवेरियन फेल्यर और गर्भ-निरोधक गोलियां स्त्री सेक्स विकार के हार्मोन संबन्धी कारण हैं, जिनमें मुख्य लक्षण शुष्क योनि (Dry Vagina), यौन-इच्छा विकार और कामोत्तेजना विकार हैं।

औषधियां

कई तरह की औषधियां विशेषतौर पर मनोरोग में दी जाने वाली सीरोटोनिन रिअपटेक इन्हिबिटर्स (SSRI) स्त्रियों में सेक्स संबन्धी विकार का महत्वपूर्ण कारण है।

यौन उत्तेजना चक्र को प्रभावित करने वाले रोग

आर्थ्राइटिस

यदि स्त्री को जोड़ों में दर्द और सूजन हो तो मुक्त लैंगिक-संसर्ग में कुछ अड़चन या दर्द होना तो स्वभाविक है, लेकिन संभोगपूर्व दर्द निवारक दवा, स्नेहन द्रव्य (Lubricant) या गर्म पानी की थैली और संभोग की आसान मुद्राओं (जिनके प्रयोग से दर्द कर रहे जोड़ों पर दबाव न पड़े) का प्रयोग करके संभोग का आनंद लिया जा सकता है।

हृदयरोग

हृदयरोग में अधिक श्रम करने पर छाती में दर्द होना या पैरों में रक्त-प्रवाह कम होना सामान्य लक्षण हैं। लेकिन स्त्रियों को लैंगिक संसर्ग में इतना श्रम नहीं होता है कि वे संभोग न कर पाएं। जैसा भी हो चिकित्सक की राय ले लेनी चाहिये।

डायबिटीज

डायबिटीज से पीड़ित स्त्रियों की नाड़ियां क्षतिग्रस्त होना शुरू हो जाती हैं, जिससे उन्हें कामोत्तेजना देर से होना, चरम-आनंद मिलने में कठिनाई आदि लक्षण होना सामान्य है। डायबिटीज को नियंत्रण में रखने से ये विकार ठीक हो जाते हैं या इनके लिए उपचार लिया जा सकता है।

एपीलेप्सी

एपीलेप्सी मस्तिष्क को जाने वाले नाड़ी संदेशों का शोर्ट सर्किट कर देती है जिससे यौन-इच्छा और कामोत्तेजना दोष होना स्वाभाविक है।

वृक्करोग

किडनी में कोई विकार होने पर मूत्रपथ और जननेन्द्रियों में संक्रमण (UTI) होना स्वाभाविक है। स्त्रियों का मूत्रपथ अपेक्षाकृत छोटा होता है। हमेशा जननेन्द्रियों को स्वच्छ रखना चाहिये और संक्रमण से बचना चाहिये।

मेरुरज्जु आघात

स्पाइनल कोर्ड में कोई भी आघात होने पर लैंगिक संसर्ग (Sexual Intercourse) प्रभावित होना स्वाभाविक बात है। इससे जननेन्द्रियों की नाड़ियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं जिससे योनि में स्नेहन द्रव्य का स्राव कम होता है, हालांकि वे संसर्ग में चरम-आनंद प्राप्त करती रहती हैं।

स्ट्रोक

मस्तिष्क की वाहिकाएं अवरुद्ध होने पर हाथ पैरों में लकवा पड़ना, पेशियों का कमजोर होना, हाथ पैरों में हरकत न होना जैसी तकलीफें होती हैं। इनके कारण लैंगिक संसर्ग प्रभावित होगा ही। लेकिन नाड़ियां क्षतिग्रस्त नहीं होती है, इसलिए हल्के-फुल्के बदलाव और जुगाड़ के साथ संभोग किया जा सकता है।

थायरॉयड रोग

थायरॉयड हार्मोन के असंतुलन से मासिक धर्म संबन्धी अनियमितताएं, यौन-इच्छा दोष हो सकता है तथा अन्य सह-घटक भी सेक्स को प्रभावित करते हैं। थायरॉयड रोग के उपचार से यौन विकार भी ठीक हो जाते हैं।

रजोनिवृत्ति (Menopause)

रजोनिवृत्ति में स्त्री के अंडाशय ईस्ट्रोजन हार्मोन बनाना बंद कर देते हैं जिसके फलस्वरूप शरीर में कई परिवर्तन होते हैं, जो उसके लैंगिक संसर्ग को भी प्रभावित करते हैं। एक मुख्य परिवर्तन योनि का शुष्क होना है। योनि में चिकने स्राव न होने से संभोग कष्टप्रद हो जाता है। ईस्ट्रोजन कम होने से योनि की पेशियां सिकुड़ जाती हैं और जख्म लगने की संभावना ज्यादा रहती है। इसके उपचार हेतु ईस्ट्रोजन की गोलियां या क्रीम दी जाती हैं।

सामान्यतः रजोनिवृत्ति में स्त्रियों की काम-इच्छा प्रभावित नहीं होती है और वे जीवन के आखिरी पड़ाव में भी लंबे समय तक लैंगिक संसर्ग का आनंद लेती रहती हैं, बशर्ते स्वास्थ्य अच्छा बना रहे और अपने जीवनसाथी से संबन्धों में मधुरता बनी रहे।

फिर भी उम्र ढलने के साथ साथ स्त्री के लैंगिक व्यवहार में फर्क तो आता है, जैसे उसे उत्तेजित होने में ज्यादा समय लगता है और चरम-आनंद की प्राप्ति भी थोड़ी कठिनाई तथा विलंब से होती है। कई स्त्रियों को चरम-आनंद की स्थिति में योनि की पेशियों के संकुचन भी अपेक्षाकृत कम होते हैं। दूसरी ओर इस उम्र तक आते आते उनके साथी भी स्तंभनदोष के शिकार हो ही जाते हैं और कई बार ऐसे दम्पत्ति लैंगिक संसर्ग के स्थान पर हाथों या मुख से एक दूसरे की जननेन्द्रियों को उत्तेजित करके या अपने यौनांगों को साथी के यौनांगों से रगड़ कर ही अपनी पिपासा शांत कर लेते हैं। इस तरह इस उम्र में भी कई दम्पत्ति नियमित यौन क्रिड़ाएं करते हैं और संतुष्ट होते हैं।

रजोनिवृत्ति में शारीरिक परिवर्तन

त्वचा

स्वेदन और सेबेशियस ग्रंथियों का स्राव कम होना, स्पर्श से कामोत्तेजना कम होना।

स्तन

स्तन में फैट की मात्रा कम होना, यौन-उत्तेजना होने पर स्तनों में फुलाव और स्तनाग्रों में संकुचन कम होना।

योनि

योनि के मांसल खोल की लंबाई और लचीलापन कम होना, योनि के गीलेपन में कमी, योनि का पीएच जो सामान्यतः 3.5 से 4.5 के बीच रहता है बढ़ कर 5 या ज्यादा हो जाना और योनि की आंतरिक झिल्ली का पतला हो जाना।

आंतरिक जननेन्द्रियां

डिम्बाशय (Ovary) और डिम्बवाही नलियों (Fallopian tubes) का छोटा होना, डिम्बाशय कूप अविवरता (Ovarian Follicular Atresia), गर्भाशय का वजन 30% से 50% कम होना, गर्भाशय की ग्रीवा का आकर्ष और श्लेष्मा (Mucous) का स्राव कम होना।

मूत्राशय

मूत्र नलिका (Ureter) और मूत्राशय त्रिकोण (Trigone of bladder) का अविवरता।

कैंसर

कैंसर का तो आगमन ही स्त्री को आतंकित, आशंकित और आहत कर देता है। उसे अपना लैंगिक आनंद तो अंधकारमय दिखाई देता ही है साथ में अपना आत्म-स्वाभिमान, सौंदर्य, आकर्षण या शरीर काई अंग खो जाने की कल्पना भी भयभीत करती रहती है। एक ओर मृत्यु और पति के बेवफा हो जाने खौफ़ बना रहता है तो दूसरी ओर सर्जरी, कीमो और रेडियो की त्रिधारी तलवार चौबीसों घंटे सिर पर लटकी रहती है। दुख की इस घड़ी में पति के प्यार की एक झप्पी जादू के समान काम करती है।

महिला सेक्स विकार के मनोवैज्ञानिक पहलू

स्त्री लैंगिक विकार के कारणों में भौतिक पहलुओं के साथ साथ मनोवैज्ञानिक पहलू भी बहुत महत्व रखते हैं।

व्यक्तिगत

धार्मिक वर्जना, सामाजिक प्रतिबंध, अहंकार, हीन भावना।

पुराने कटु अनुभव

पूर्व लैंगिक, शाब्दिक या शारीरिक प्रताड़ना, बलात्कार, सेक्स संबन्धी अज्ञानता।

साथी से मतभेद

संबन्धों में कटुता, विवाहेतर लैंगिक संबन्ध, वर्तमान लैंगिक, शाब्दिक या शारीरिक प्रताड़ना, कामेचछा मतभेद , वैचारिक मतभेद, संवादहीनता।

दुनियादारी

आर्थिक, काम-काज या पारिवारिक समस्याएं, परिवार में किसी की बीमारी या मृत्यु, अवसाद (Depression)।

निदान

स्त्रियों के सेक्स विकारों के कारण और उपचार के मामले में चिकित्सक दो खेमों में बंट गये हैं। हमें दोनों पर ध्यान देना है और दोनों के हिसाब से ही उपचार करना है।

पहला खेमा वाहिकीय परिकल्पना को महत्व देता है और मानता है कि किसी बीमारी (जैसे डायबिटीज और एथरोस्क्किरोसिस), प्रौढ़ता या तनाव की वजह से जननेन्द्रियों में रक्तप्रवाह कम होने से योनि में सूखापन आता है तथा भगशिश्न की संवेदना कम होती है जिससे यौन उत्तेजना प्रभावित होती है। ये लोग ऐसी औषधियों और मरहम प्रयोग करने की सलाह देते हैं जो जननेन्द्रियों में रक्तप्रवाह बढ़ाती हैं।

दूसरा खेमा हार्मोन की थ्योरी पर ज्यादा विश्वास रखता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ स्त्रियों के शरीर में स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन और पुरूष हार्मोन टेस्टोस्टीरोन का स्राव कम होने लगता है। ईस्ट्रोजन के कारण ही स्त्रियों में यौन-इच्छा पैदा होती है। टेस्टोस्टिरोन पुरुष हार्मोन है लेकिन यह स्त्रियों में भी कई महत्वपूर्ण कार्य करता है। स्त्रियों में इसका स्राव पुरूषों के मुकाबले 5% ही होता है। यह यौवन के आगमन के लिए उत्तरदायी है जिसमें किशोर लड़कियों के जननेन्द्रियों और बगल में बाल आने शुरू हो जाते हैं। स्तन और जननेन्द्रियाँ संवेदनशील हो जाती हैं और इनमें काम-उत्तेजना होने लगती है।

पुरुष हार्मोन्स को एन्ड्रोजन के नाम से भी जाना जाता है। ये स्त्रियों में कामोत्तेजना के लिए प्रमुख हार्मोन हैं। साथ ही यह स्त्रियों में हड्डियों के विकास और घनत्व बनाये रखने के लिए भी अत्यंत आवश्यक हैं।

स्त्रियों के शरीर में सबसे ज्यादा टेस्टोस्टिरोन का स्राव प्रजनन काल में होता है। इस हार्मोन की अधिकतर मात्रा एक विशिष्ट बंधनकारी ग्लोब्युलिन से जुड़ी रहती है। इसका मतलब उपरोक्त महत्वपूर्ण कार्यों के लिए इसकी एक सिमित मात्रा ही रक्त में विद्यमान रहती है। रक्त के परीक्षण द्वारा हम रक्त में मुक्त और बंधित टेस्टोस्टिरोन का स्तर जान सकते हैं और सही निदान कर सकते हैं।

रजोनिवृत्ति में स्त्रियों के अंडाशय ईस्ट्रोजन और टेस्टोस्टिरोन दोनों का ही स्राव कम कर देते हैं। टेस्टोस्टिरोन की कमी के मुख्य लक्षण यौन इच्छा कम होना, लैंगिक कल्पनाएं, स्वप्न और विचार कम आना, स्तनाग्र, योनि और भगशिश्न की स्पर्श संवेदना कम होना है। स्वाभाविक है कि काम-उत्तेजना और चरम-आनंद की अनुभूति भी प्रभावित होगी।

साथ ही शरीर की मांस-पेशियां भी पतली होने लगती हैं, जननेन्द्रियों के बाल कम होने लगते हैं और प्रजनन अंग सिकुड़ने शुरू हो जाते हैं। योनि और आसपास के ऊतक घटने लगते हैं। संभोग में दर्द होने लगता है और सिर के बाल भी पुरुषों की भांति कम होने लगते हैं।

एक तीसरा सिद्धांत और सामने आया है जिसे अतृप्ति या असंतोष परिकल्पना कहते हैं, इसे भी ठीक से समझना जरूरी है। कई स्त्रियों में लैंगिक समस्याओं का कारण हार्मोन्स की कमी या जननेन्द्रियों में रक्त का कम प्रवाह न होना होकर संभोग के समय भगशिश्न और योनि का पर्याप्त घर्षण नहीं होना है। युवा स्त्रियों में यह बहुत महत्वपूर्ण है। कई बार स्त्री और पुरूष सेक्स के मामले में खुलकर वार्तालाप नहीं करते हैं। जिससे वे एक दूसरे की इच्छाओं, पसंद नापसंद, वरीयताओं से अनभिज्ञ रहते हैं। पुरूष को मालूम नहीं हो पाता कि वह स्त्री को किस तरह कामोत्तेजित करे, स्त्री को कौनसी यौन-क्रिड़ाएं ज्यादा भड़काती हैं, उसके शरीर के कौन से क्षेत्र वासनोत्तेजक (Erogenous) हैं और कौनसी लैंगिक मुद्राएं उसे जल्दी चरम-आनंद देती हैं। इस तरह स्त्री को मिलती है सेक्स में असंतुष्टि, आत्मग्लानि, अवसाद और लैंगिक संसर्ग से विरक्ति। यदि समय रहते समस्या का निदान और उपचार न हो पाये तो पहले आपस में तकरार, फिर संबंधों में दरार, आगे चल कर विवाहेतर सम्बंध और तलाक होने में भी देर नहीं लगती।

कुछ ही वर्षों पहले तक माना जाता था कि अधिकतर (90% से ज्यादा) स्त्री लैंगिक रोग मनोवैज्ञानिक कारणों से होते हैं। लेकिन आज धारणायें बदल गयी हैं। अंततः चिकित्सक और शोधकर्ता इसके निदान और उपचार के नये-नये आयाम ढ़ूंढ रहे हैं। आजकल देखा जा रहा है कि स्त्री लैंगिक रोग के ज्यादातर मामले किसी न किसी शारीरिक रोग के कारण हो रहे हैं, न कि मनोवैज्ञानिक कारणों से। इसलिए उपचार भी संभव हो सका है।

चिकित्सक को चाहिये कि वह एकांत और शांत परामर्श कक्ष में स्त्री को अपने पूरे विश्वास में लेकर सहज भाव से विस्तार में पूछताछ करे। रोगी से उसकी माहवारी, लैंगिक संसर्ग, व्यक्तिगत या पारिवारिक सूचनाएं, वर्तमान या अतीत में हुई कोई लैंगिक या अन्य प्रताड़ना आदि के बारे में बारीकी से पूछा जाना चाहिये। रोगी के साथी से भी अच्छी तरह पूछताछ की जानी चाहिये। एक ही प्रश्न कई तरीके से पूछना चाहिये ताकि रोगी की समस्या को समझने में कोई गलती न हो। बातचीत के दौरान उसे बीच-बीच में रोगी की आँखों में आँखे डाल कर बात करनी चाहिये और शारीरिक मुद्राओं पर भी पूरा ध्यान रखना चाहिये। स्त्री को भी बिना कुछ छुपाये अपनी समस्या स्पष्ट तरीके से चिकित्सक को बता देनी चाहिये। चिकित्सक को उन सारी औषधियों के बारे में भी बता देना चाहिये जिनका वह सेवन कर रही है। हो सकता है उसकी सारी तकलीफ कोई दवा कर रही हो और मात्र एक दवा बदलने से ही उसकी सारी तकलीफ मिट जाये।

इसके बाद चिकित्सक को बड़े ध्यान से रोगी का क्रमबद्ध तरीके से परीक्षण करना चाहिये ताकि की रोग यहीं चिन्हित कर लिए जायें।
 
यंत्रों द्वारा योनि परीक्षण

योनि में रक्त के प्रवाह और संचय को फोटोप्लेथीस्मोग्राफी द्वारा नापा जाता है। इसमें एक टेम्पून के आकार का एक्रिलिक यंत्र योनि में डाला जाता है जो प्रकाश की किरणों द्वारा रक्त के बहाव और तापमान को नापता है। लेकिन यह चरम-आनंद की अवस्था में बहाव और तापमान को नापने में असमर्थ है। योनि का पीएच लेवल भी नापा जाता है। यूरोलोजिस्ट पीएच नाप कर योनि में संक्रमण करने वाले कीटाणुओं का अनुमान लगा लेते हैं। रजोनिवृत्ति में हार्मोन और योनि में स्राव की मात्रा कम होने से पीएच बढ़ कर 5 या ज्यादा ज्यादा हो जाता है। भगशिश्न तथा भगोष्ठ की दबाव और तापमान के प्रति संवेदना को बायोथीसियोमीटर नामक यंत्र द्वारा नापा है।

उपचार

कई बार स्त्रियों की सेक्स समस्याओं के उपचार की आवश्यकता ही नहीं होती है। बस आप अपनी समस्या खुल कर साथी को बताते रहें, आपके साथी से तालमेल अच्छा हो तो छोटी मोटी समस्याएं आप मिल कर ही हल कर लेंगे। जरूरत सिर्फ अपनी नीरस और बोरिंग हो चले सेक्स रूटीन में जोश और रोमांस का तड़का लगाने और छोटी छोटी बुनियादी बातों को व्यवहार में लाने की है।

बुनियादी उपचार सूत्र

शिक्षा

जननेन्द्रियों की संरचना और कार्यप्रणाली, माहवारी, गर्भावस्था, रजोनिवृत्ति, प्रौढ़ता आदि के बारे में स्त्रियों को किताबों, प्रदर्शनियों और टीवी के जरिये पूरी जानकारी दी जानी चाहिये। जब भी रोगी को कोई नई बीमारी का निदान हो या नई दवा दी जाये या कोई शल्यक्रिया हो तो उसे संबन्धित लैंगिक मुद्दों के बारे चर्चा की जानी चाहिये।

तौरतरीकों में बदलाव

लैंगिक संसर्ग के समय बातचीत करें, एकदूसरे की पसंद नापसंद, वरीयताएं जानें और एकदूसरे की उत्तेजना भड़काने वाली यौन-क्रियाएं मालूम करें। लैंगिक संसर्ग की मुद्राएं, समय और स्थान बदल कर जीवन में नयापन लायें। कभी कभी रोमांस के लिए एक दिन निश्चित करें, शहर से बाहर निकलें, सैर-सपाटा मौज मस्ती करें और किसी रोमांटिक रिसोर्ट में रात की पारी खेलें।

इन्हें भी आजमायें

कभी-कभी सप्ताहांत में दोनों साथी रूमानी हो जाये, अगरबत्ती जला कर फिजा को महकाये, शमां जला कर दिव्य माहौल बनाये, सपनों की दुनिया सजायें, बारी-बारी से एक दूसरे का प्यार से किसी अच्छे हर्बल तेल द्वारा मसाज करें, गुफ्तगू करें। एक दूसरे को बतायें कि उन्हें कहाँ और कैसा स्पर्श अच्छा लगता है। ऐसा मसाज से दम्पत्तियों के ऊर्जा चक्र खुल जाते हैं और वे एक दूजे में खो जाते हैं।

कीगल व्यायाम

लाभ

• मूलाधार की पेशियां मजबूत होती हैं।

• चरम-आनंद की तीवृता बढ़ती है।

• चरम-आनंद के समय मूत्र निकल जाने की समस्या ठीक होती है।

• संभोग के समय ध्यान का विकर्षण (Distraction) होता है।

• संभोग के आनंद की अनुभूति बढ़ती है।

विधि

विधि सरल है स्त्री योनि में अपनी अंगुली डाल कर मूलाधार (Perineum) की मांसपेशियों को उसी तरह धीरे धीरे दस तक गिनते हुए सिकोड़ें मानो मूत्र-त्याग की क्रिया को रोकना हो, फिर तीन गिनने तक मांसपेशियों को सिकोड़ें रहें और उसी तरह धीरे धीरे दस तक गिनते हुए मांसपेशियों को ढीला छोड़ें। इसे दस से पंद्रह बार रोज करें। बाद में इसे किसी भी समय, कहीं भी, किसी भी मुद्रा में किया जा सकता है।

यौन-इच्छा विकार

यौन-उच्छा विकार का उपचार आसान नहीं है। रजोनिवृत्ति-पूर्व यौन-इच्छा विकार कई बार आधुनिक जीवनशैली के घटकों जैसे बच्चों की पढ़ाई या जिम्मेदारियों का बोझ, ऑफिस के कामों का मनोवैज्ञानिक दबाव, दवाइयां या अन्य सेक्स विकार आदि के कारण भी होता है। कई बार लैंगिक संसर्ग में आई उकताहट से भी यौन-इच्छा कम हो जाती है। रजोनिवृत्ति के दौरान यौन-इच्छा विकार के उपचार हेतु ईस्ट्रोजन का प्रयोग किया जाता है।

कामोत्तेजना विकार
कामोत्तेजना विकार के उपचार में अच्छे स्नेहन द्रव्य प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। ज्यादा उम्र की स्त्रियों में कई बार अपर्याप्त घर्षण के कारण उत्तेजना नहीं होती है। तब चिकित्सक उन्हें मैथुनपूर्व गर्म शावर लेने, मैथुनपूर्व कामक्रिड़ाएं बढ़ाने आदि की सलाह देते हैं।

चरम-आनंद विकार (Anorgasmia)

ऐनोर्गेज्मिया का उपचार संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा और सेन्सेट फोकस द्वारा किया जाता है। इसके औषधीय उपचार में सिलडेनाफिल और बूप्रोपियोन का प्रयोग किया जाता है। लेकिन इनके नतीजे बहुत अच्छे नहीं हैं और ये एफ.डी.ए. द्वारा प्रमाणित भी नहीं है।

कष्टप्रद संभोग

के कई भौतिक कारण हो सकते हैं और उनका समाधान उपचार का पहला कदम होना चाहिये। यदि कारण मालूम न हो सके या अस्पष्ट हो तो उपचार बहु-आयामी और बहु-विषयक होना चाहिये। आवश्यकतानुसार मनोचिकित्सा भी देनी चाहिये जिसमें पुरुष को भी साथ रखना चाहिये और शारीरिक, भावनात्मक और आपसी तालमेल संबन्धी सभी मुद्दों के समाधान हो जाने चाहिये।

लैंगिक दर्द विकार के कुछ कारणों जैसे वलवर वेस्टिब्युलाइटिस और वेजीनिसमस के उपचार में फिजियोथैरेपी (आपसी प्रतिक्रिया, श्रोणि की पेशियों का विद्युत उत्तेजन, श्रोणि का सोनोग्राम, वेजाइनल डाइलेटर्स) काफी लाभदायक है।

योनि आकर्ष के उपचार में मनोचिकित्सक धीरे धीरे रोगी को विश्वास में लेता है। योनि का परीक्षण यह कह कर करता है कि दर्द होने पर परीक्षण रोक देगा और आहिस्ता आहिस्ता योनि को फैला देता है। इस तरह रोगी का डर निकाल देता है।

वेजीनिसमस के औषधीय उपचार हेतु वेजाइनल एट्रोफी में ईस्ट्रोजन, वल्वोवेजाइनल केन्डायसिस में फंगसरोधी और वलवर वेस्टिब्युलाइटिस में एन्टीडिप्रेसेन्ट आदि प्रयोग करते हैं।

औषधियां

यदि आपकी समस्या किसी भौतिक कारण से है तो चिकित्सक आपके उपचार की योजना बतला देगा। योजना में दवाइयां, जीवनशैली में छोटा-मोटा बदलाव या शल्यक्रिया का सुझाव भी हो सकता है। हो सकता है वह आपको मनोचिकित्सक से भी संपर्क करने को कहे। कुछ प्रभावशाली उपचार इस तरह हैं।

योनि स्नेहन द्रव्य

शुष्क योनि के उपचार हेतु बाजार में विभिन्न स्नेहन क्रीम, जेल या सपोजीटरी मिलते है। ये बिना चिकित्सक प्रपत्र के भी खरीदे जा सकते हैं। पानी में घुलनशील क्रीम या जेल अच्छे रहते है। लेटेक्स रबर के बने कंडोम तेल में घुलनशील स्लेहन द्रव्य जैसे पेट्रोलियम जैली, मिनरल तेल या बेबी ऑयल से क्रिया कर फट सकते हैं।

ईस्ट्रोजन क्रीम

रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली शुष्क योनि तथा योनि क्षय में ईस्ट्रोजन क्रीम का प्रयोग काफी लाभप्रद रहता है।

सिलडेनाफिल

सिलडेनाफिल पुरुषों के स्तंभनदोष में काफी प्रयोग की जाती है। स्त्रियों में काम-उत्तेजना पैदा करने के लिए एलोपैथी के पास अभी कोई दवा नहीं है। इसलिए सिलडेनाफिल को स्त्रियों में भी जुगाड़ के रूप में प्रयोग किया गया है, पर नतीजे ज्यादा अच्छे नहीं हैं। कुछ ही स्त्रियों की काम-उत्तेजना में लाभ देखा गया है। एफ.डी.ए. ने भी इसे स्त्रियों में प्रयोग करने के लिए प्रमाणित नहीं किया है। इसके पार्श्वप्रभाव सिरदर्द, जुकाम, चेहरे पर लालिमा, असामान्य दृष्टि, अपच आदि हैं। कभी-कभी उसके प्रयोग से रक्तचाप इतना कम हो सकता है कि घातक दिल का दौरा पड़ सकता है। नाइट्रेट सेवन करने वालों को सिलडेनाफिल लेना जानलेवा साबित हो सकता है। ।

होर्मोन प्रतिस्थापना उपचार (Hormone Replacement Therapy)

रजोनिवृत्ति से होने वाले विकारों के उपचार हेतु होर्मोन्स का प्रयोग किया जाता है। अकेला ईस्ट्रोजन उन स्त्रियों को दिया जाता है जिनका गर्भाशय शल्यक्रिया द्वारा निकाल दिया गया है जबकि गर्भाशय को साथ लिए जी रही स्त्रियों को ईस्ट्रोजन-प्रोजेस्टिन (कृत्रिम प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन) दिया जाता है क्योंकि प्रोजेस्टिन ईस्ट्रोजन की अधिकता के दुष्प्रभाव (गर्भाशय कैंसर) से गर्भाशय की सुरक्षा करते हैं। वर्षों तक यह समझा जाता रहा कि रजोनिवृत्ति में ईस्ट्रोजन-प्रोजेस्टिन उपचार स्त्रियों को हृदयरोग, उच्च-कॉलेस्टेरोल, कैंसर आंत, एल्झाइमर रोग और अस्थिक्षय (Osteoporosis) से बचाता है। परंतु 2002 में हुई खोज के अनुसार रजोनिवृत्ति में ईस्ट्रोजन या इस्ट्रोजन-प्रोजेस्टिन उपचार से स्तन कैंसर, हृदयाघात, स्ट्रोक और अंडाशय कैंसर का जोखिम बहुत बढ़ जाता है। होर्मोन उपचार उन स्त्रियों को बहुत राहत देता है जिनको रजोनिवृत्ति के कारण शुष्क योनि या संभोग में दर्द होता है साथ में हॉट फ्लशेज और अनिद्रा में भी लाभ मिलता है। अनुसंधानकर्ता छोटे अंतराल के लिए दिये गये होर्मोन उपचार को तो सुरक्षित मानते हैं लेकिन लंबे समय तक होर्मोन उपचार देने के पक्ष में नहीं हैं। पांच वर्ष के बाद होर्मोन उपचार बंद कर दिया जाना चाहिये। स्त्रियों में होर्मोन उपचार शुरू करने का निर्णय सोच समझ कर लिया जाना चाहिये और रोगी को इसके फायदे नुकसान अच्छी तरह समझा देने चाहिये।

टेस्टोस्टिरोन

वैज्ञानिकों के पास पर्याप्त सबूत हैं कि स्त्रियों में काम-इच्छा, काम-ज्वाला और लैंगिक संसर्ग के स्वप्न और विचारों को भड़काने में टेस्टोस्टिरोन बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसीलिए इसे स्त्रियों के लिए हार्मोन ऑफ डिजायर कहा जाता है । अब प्रश्न यह है कि इसे कब देना चाहिये। अनुभवी चिकित्सक कहते हैं कि रजोनिवृत्ति में यदि काम-इच्छा का अभाव हो और रक्त में टेस्टोस्टिरोन का स्तर भी कम हो तो इसे अवश्य देना चाहिये।

इसके लिए त्वचा पर चिपकाने वाले टेस्टोस्टीरोन के पेच मिलते हैं। इसकी मात्रा 300 माइक्रोग्राम प्रति दिन है और इसे तीन महीनें तक आजमाना चाहिए। यदि तीन महीनें में फायदा न हो तो बन्द कर दें। इसके पार्श्व प्रभाव जैसे सिर के बाल उड़ना, दाड़ी मूँछ उग आना, मर्दों जैसी आवाज हो जाना आदि जैसे ही दिखे, इसका सेवन बन्द कर देना चाहिए। वैसे मैं आपको टेस्टोस्टीरोन लेने की सलाह नहीं दूंगा, क्योंकि लाभ की संभावना कम और पार्श्व प्रभावों की संभावना ज्यादा रहती है। वैसे भी यह स्त्रियों में एफ.डी.ए. द्वारा प्रमाणित नहीं है।

पीटी-141 नेजल स्प्रे

फीमेल वियाग्रा के नाम से चर्चित पीटी-141 नेजल स्प्रे पेलेटिन टेक्नोलोजीज जोर शोर से बाजार में उतारने की तैयारी कर रही थी और कहा जा रहा था कि जैसे ही स्रियां अपने नाक में इसका स्प्रे लेंगी, 15 मिनट में उनकी कामेच्छा एकदम भड़क उठेगी। लेकिन हृदय पर इसके इतने घातक कुप्रभाव देखे गये कि इसकी शोध पर तुरंत रोक लगानी पड़ी। फिर भी कुछ लोग इसे बेच रहे हैं अतः आप इसे भूल कर भी नहीं खरीदें।

वैकल्पिक चिकित्सा

आपने ऊपर पढ़ा है कि ऐलोपैथी में स्त्री यौन विकारों का उपचार पूर्णतया विकसित नहीं हुआ है और अभी प्रयोगात्मक अवस्था में ही है। लेकिन आयुर्वेद यौन रोगों में 5000 वर्ष पूर्व से शतावरी, शिलाजीत, अश्वगंधा, जटामानसी, सफेदमूसली जैसी महान औषधियाँ प्रयोग कर रहा है। ये पूर्णतः निरापद और सुरक्षित हैं और जादू की तरह कार्य करती हैं।

संभोग से समाधि की ओर ले जाये अलसी

अलसी आधुनिक युग में स्त्रियों की यौन-इच्छा, कामोत्तेजना, चरम-आनंद विकार, बांझपन, गर्भपात, दुग्धअल्पता की महान औषधि है। स्त्रियों की सभी लैंगिक समस्याओं के सारे उपचारों से सर्वश्रेष्ठ और सुरक्षित है अलसी। “व्हाई वी लव” और “ऐनाटॉमी ऑफ लव” की महान लेखिका, शोधकर्ता और चिंतक हेलन फिशर भी अलसी को प्रेम, काम-पिपासा और लैंगिक संसर्ग के लिए आवश्यक सभी रसायनों जैसे डोपामीन, नाइट्रिक ऑक्साइड, नोरइपिनेफ्रीन, ऑक्सिटोसिन, सीरोटोनिन, टेस्टोस्टिरोन और फेरोमोन्स का प्रमुख घटक मानती है।

• सबसे पहले तो अलसी आप और आपके जीवनसाथी की त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनायेगी। आपके केश काले, घने, मजबूत, चमकदार और रेशमी हो जायेंगे।


• अलसी आपकी देह को ऊर्जावान और मांसल बना देगी। शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी गहेगी, न क्रोध आयेगा और न कभी थकावट होगी। मन शांत, सकारात्मक और दिव्य हो जायेगा।


• अलसी में ओमेगा-3 फैट, आर्जिनीन, लिगनेन, सेलेनियम, जिंक और मेगनीशियम होते हैं जो स्त्री हार्मोन्स, टेस्टोस्टिरोन और फेरोमोन्स ( आकर्षण के हार्मोन) के निर्माण के मूलभूत घटक हैं। टेस्टोस्टिरोन आपकी कामेच्छा को चरम स्तर पर रखता है।


• अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैट और लिगनेन जननेन्द्रियों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाती हैं, जिससे कामोत्तेजना बढ़ती है।


• इसके अलावा ये शिथिल पड़ी क्षतिग्रस्त नाड़ियों का कायाकल्प करती हैं जिससे मस्तिष्क और जननेन्द्रियों के बीच सूचनाओं एवं संवेदनाओं का प्रवाह दुरुस्त हो जाता है। नाड़ियों को स्वस्थ रखने में अलसी में विद्यमान लेसीथिन, विटामिन बी ग्रुप, बीटा केरोटीन, फोलेट, कॉपर आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।


इस तरह आपने देखा कि अलसी के सेवन से कैसे प्रेम और यौवन की रासलीला सजती है, दिव्य सम्भोग का दौर चलता है, देह के सारे चक्र खुल जाते हैं, पूरे शरीर में दैविक ऊर्जा का प्रवाह होता है और सम्भोग एक यांत्रिक क्रीड़ा न रह कर शिव और उमा की रति-क्रीड़ा का उत्सव बन जाता है, समाधि का रूप बन जाता है।

Monday, November 22, 2010

मधुमेह हुआ जबसे हमको, मिष्ठान नही हम खाते हैं।

मधुमेह हुआ जबसे हमको,
मिष्ठान नही हम खाते हैं।
बरफी-लड्डू के चित्र देखकर,
अपने मन को बहलाते हैं।।
आलू, चावल और रसगुल्ले,
खाने को मन ललचाता है,
हम जीभ फिराकर होठों पर,

आँखों को स्वाद चखाते हैं।
मधुमेह हुआ जबसे हमको,
मिष्ठान नही हम खाते हैं।।
गुड़ की डेली मुख में रखकर,
हम रोज रात को सोते थे,
बीते जीवन के वो लम्हें,
बचपन की याद दिलाते हैं।
मधुमेह हुआ जबसे हमको,
मिष्ठान नही हम खाते हैं।
हर सामग्री का जीवन में,
कोटा निर्धारित होता है,
उपभोग किया ज्यादा खाकर,
अब जीवन भर पछताते हैं।
मधुमेह हुआ जबसे हमको,
मिष्ठान नही हम खाते हैं।
थोड़ा-थोड़ा खाते रहते तो,
जीवन भर खा सकते थे,
पेड़ा और बालूशाही को,
हम देख-देख ललचाते हैं।
मधुमेह हुआ जबसे हमको,
मिष्ठान नही हम खाते हैं।
हमने खाया मन-तन भरके,
अब शिक्षा जग को देते हैं,
खाना मीठा पर कम खाना,
हम दुनिया को समझाते हैं।
मधुमेह हुआ जबसे हमको,
मिष्ठान नही हम खाते हैं।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)






रविकांत ने अलसी से डायबिटीज पर किया काबू


मुझे यह सूचित करते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि आपके दिशा निर्देशन में मैं डायबिटीज जैसे भयानक और असाद्य रोग को नियंत्रण करने में सफल रहा हूँ। मुझे अपने डायबिटीज होने की जानकारी वर्ष 2008 माह सितम्बर में तब हुआ जब मैंने अपना ब्लड शुगर चेक करवाया उस समय मेरा ब्लड शुगर F 265- PP 450 था। उसके बाद मैंने ऐलोपैथी दवा मैंने छः या सात माह तक चालू रखी लेकिन बाद में दिनचर्या बिगड़ जाने एंव ऐलोपैथी दवा के साइड इफेक्ट के चलते उसे मैने नियमित नहीं रखा तथा मेरी शुगर खतरनाक तरीके से बढ़कर पुनः 298-490 हो गई। इसके बाद मैं आप (डॉ. वर्मा साहब) के सम्पर्क में आया। डॉ. वर्मा साहब ने मुझे अलसी से डायबिटीज पर नियंत्रण करने की सलाह दी। मैं उनके बताये अनुसार अलसी और गेहूँ के आटे की मिश्रित रोटी माह अगस्त, 2010 से लगातार खा रहा हूँ। साथ ही साथ सुबह 1 घंटा टहलना तथा आधे घंटे शाम में टहलना जारी कर रखा हूँ। इसके साथ-साथ 30-45 मी.ली. अलसी का तेल जो ठंडी विधि से निकाला गया हो, 100 ग्राम दही के साथ मिलाकर हैंड ब्लेंडर से मिश्रित कर सुबह–सुबह खाली पेट में ले रहा हूँ। डॉ. साहब की सलाह से रिफाइण्ड तेल बिलकुल बन्द कर सरसों का घाणी का तेल खा रहा हूँ। इसके अलावा दाल चीनी भी एक चुटकी सुबह-शाम गर्म दाल सब्जी के साथ ले रहा हूँ। इसके अलावा ऐलोपैथी दवा Mopaday–15 सुबह – शाम, Ebiza - L सुबह शाम एवं दो–दो गोली डाबर शीलाजीत का सुबह-शाम ले रहा हूँ। अब मेरा तीन महीने बाद ब्लड शुगर 108-135 हो गया है। मुझे अब काफी अच्छा महसूस कर रहा हूँ। मेरा मोबाइल नं. 9460176480 है। मैं अपना फोटो भी इस पत्र के साथ भेज रहा हूँ। मुझे पहले पैदल चलने पर चक्कर आने जैसा अनुभव होता था लेकिन अब ठीक है कोई बात नहीं है। पहले मेरी कमर में जकड़न रहती थी जो अब ठीक हो गयी है। मैं चश्मा तो नहीं लगाता था लेकिन अलसी खाने से मेरी नज़र बहुत क्लियर और अच्छी हो गयी है। पहले थोड़ा सा घूमने के बाद ही चक्कर से आते थे, लगता था जैसे गिर जाऊंगा लेकिन अब बिना परेशानी के मैं डेढ़ घंटा रोज घूम रहा हूँ। पहले सीढ़ियां चढ़ने में घबराहट होती थी अब दौड़कर सीढ़ियां चढ़ जाता हूँ।

(रविकान्त प्रसाद)

Saturday, November 6, 2010

स्तंभनदोष - कारण और निवारण

आधुनिक युग में हमारी जीवनशैली और आहारशैली में आये बदलाव और भोजन में ओमेगा-3 की भारी कमी आने के कारण पुरुषों में स्तंभनदोष या इरेक्टाइल डिसफंक्शन की समस्या बहुत बढ़ गई है। यौन उत्तेजना होने पर यदि शिश्न में इतना फैलाव और कड़ापन भी न आ पाये कि संपूर्ण शारीरिक संबन्ध स्थापित हो सके तो इस अवस्था को स्तंभनदोष कहते हैं। इसका मुख्य कारण डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, दवाइयां (ब्लडप्रेशर, डिप्रेशन आदि में दी जाने वाली) इत्यादि है। यह ऐसा रोग है जिस पर अमूमन खुलकर चर्चा भी कम ही होती है। सच यह है कि असहज, व्यक्तिगत और असुविधाजनक चर्चा मानकर छोड़ दिए जाने से इस गंभीर दुष्प्रभाव के प्रति जागरूकता लाने का एक महत्वपूर्ण पहलू छूट जाता है। सेक्स की चर्चा करने में हम शर्म झिझक महसूस करते हैं। शायद हम सेक्स को पोर्नोग्राफी से जोड़ कर देखते हैं। जहां पोर्नोग्राफी विकृत, अश्लील और घिनौना अपराध है, वहीं सेक्स स्वाभाविक, प्राकृतिक, सहज तथा प्रकृति-प्रदत्त महत्वपूर्ण शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है। यह सभ्य समाज के निर्माण हेतु हमारा परम कर्तव्य है। सेक्स विवाह का अनूठा उपहार है, पति पत्नि के प्रगाढ़ प्रेम की पूर्णता है, परिपक्वता है, सफलता है, परस्पर दायित्वों का वहन है, मातृत्व का पहला पाठ है, पिता का परम आशीर्वाद है और ईश्वर की सबसे प्रिय इस धरा-लोक के संचालन का प्रमुख जरिया है। सेक्स संबन्धी समस्याओं के निवारण के लिए व्यापक चर्चा होनी चाहिये।

आज के परिवेश में यह विषय और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि आजकल यह रोग युवाओं को भी अपना शिकार बना रहा है। आप देख रहे हैं कि आजकल तो भरी जवानी में ही बास्टर्ड ब्लडप्रेशर बिना दस्तक दिये घर में घुस जाता है और सेक्स का लड्डू चखने के पहले ही डायन डायबिटीज उन्हें डेट पर ले जाती है।

शिश्न की संरचना

शिश्न की त्वचा अति विशिष्ट, संवेदनशील, काफी ढीली और लचीली होती है, ताकि स्तंभन के समय जब शिश्न के आकार और मोटाई में वृद्धि हो और कड़ापन आये तो त्वचा में कोई खिंचाव न आये। त्वचा का यह लचीलापन सेक्स होर्मोन द्वारा नियंत्रित होता है। मानव शिश्न स्पंजी ऊतक के तीन स्तंभों से मिल कर बनता है। पृष्ठीय पक्ष पर दो कोर्पस केवर्नोसा एक दूसरे के साथ-साथ तथा एक कोर्पस स्पोंजिओसम उदर पक्ष पर इन दोनों के बीच स्थित होता है। ये दोनों कोर्पस कैवर्नोसा स्तंभ शुरू के तीन चौथाई भाग में छिद्रों द्वारा आपस में जुड़े रहते हैं। पीछे की ओर ये विभाजित हो कर प्यूबिक आर्क के जुड़े रहते हैं। रेक्टस पेशी का निचला भाग शिश्न के पिछले भाग से जुड़ा रहता है। इन स्तंभों पर एक कड़ा, मोटा और मजबूत खोल चढ़ा रहता है जिसे टूनिका एल्बूजीनिया कहते हैं। मूत्रमार्ग कोर्पस स्पोंजिओसम में होकर गुजरता है। बक्स फेशिया नामक कड़ा खोल इन तीनों स्तंभों को लिपटे रहता है। इसके बाहर एक खोल और होता है जिसे कोलीज फेशिया कहते हैं। कोर्पस स्पोंजिओसम का वृहत और सुपारी के आकार का सिरा शिश्नमुंड कहलाता है जो अग्रत्वचा द्वारा सुरक्षित रहता है। अग्रत्वचा एक ढीली त्वचा की दोहरी परत वाली संरचना है जिसको अगर पीछे खींचा जाये तो शिश्नमुंड दिखने लगता है। शिश्न के निचली ओर का वह क्षेत्र जहाँ से अग्रत्वचा जुड़ी रहती है अग्रत्वचा का बंध (फ्रेनुलम) कहलाता है। शिश्नमुंड की नोक पर मूत्रमार्ग का अंतिम हिस्सा, जिसे मूत्रमार्गी छिद्र के रूप में जाना जाता है, स्थित होता है। यह मूत्र त्याग और वीर्य स्खलन दोनों के लिए एकमात्र रास्ता होता है। शुक्राणु का उत्पादन दोनो वृषणों मे होता है और इनका संग्रहण संलग्न अधिवृषण (एपिडिडिमस) में होता है। वीर्य स्खलन के दौरान, शुक्राणु दो नलिकाओं जिन्हें शुक्रवाहिका (वास डिफेरेंस) के नाम से जाना जाता है और जो मूत्राशय के पीछे की स्थित होती हैं, से होकर गुजरते है। इस यात्रा के दौरान सेमिनल वेसाइकल और शुक्रवाहक द्वारा स्रावित तरल शुक्राणुओं मे मिलता है और जो दो स्खलन नलिकाओं के माध्यम से पुरुष ग्रंथि (प्रोस्टेट) के अंदर मूत्रमार्ग से जा मिलता है। प्रोस्टेट और बल्बोयूरेथ्रल ग्रंथियां इसमे और अधिक स्रावों को जोड़ते है और वीर्य अंतत: शिश्न के माध्यम से बाहर निकल जाता है।

स्तंभन दोष के कारण

सामान्य स्तंभन की प्रक्रिया हार्मोन, नाड़ी तंत्र, रक्तपरिवहन तथा केवर्नोसल घटकों के सामन्जस्य पर निर्भर करती है। स्तंभनदोष में कई बार एक से ज्यादा घटक कार्य करते हैं।

मनोवैज्ञानिक कारण

शिश्न आघात या रोग

पेरोनीज रोग, अविरत शिश्नोत्थान (Priapism)।

दवाइयां

डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, डिप्रेशन आदि रोगों की अधिकतर दवाइयां आदमी को नपुंसक बना देती हैं।

प्रौढ़ता (Ageing)

जीर्ण रोग (Chronic Diseases)

डायबिटीज, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, अनियंत्रित लिपिड प्रोफाइल, किडनी फेल्यर, यकृत रोग और वाहिकीय रोग।

विकृत जीवनशैली

धूम्रपान और मदिरा सेवन।

धमनी रोग

डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और कई दवाइयों के प्रयोग की वजह से।

नाड़ी संबन्घी रोग

सुषुम्ना नाड़ी आघात (Spinal cord Injury), वस्तिप्रदेश आघात (Injury Pelvis) या शल्य क्रिया, मल्टीपल स्क्लिरोसिस, स्ट्रोक आदि।

हार्मोन

टेस्टोस्टीरोन का स्राव कम होना, प्रोलेक्टिन बढ़ना।

स्तंभन का रसायनशास्त्र

स्पर्श, स्पंदन, दर्शन, श्रवण, गंध, स्मरण या किसी अन्य अनुभूति द्वारा यौन उत्तेजना होने पर शिश्न में नोनएड्रीनर्जिक नोनकोलीनर्जिक नाड़ी कोशिकाएं और रक्तवाहिकाओं की आंतरिक भित्तियां (Endothelium) नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) का स्राव करते हैं। नाइट्रिक ऑक्साइड अति सक्रिय तत्व है तथा ये एंजाइम साइटोप्लाज्मिक गुआनाइल साइक्लेज को सक्रिय करते हैं जो GTP को cGMP में परिवर्तित कर देते हैं। cGMP विशिष्ठ प्रोटीन काइनेज को सक्रिय करते हैं जो अमुक प्रोटीन में फोस्फेट का अणु जोड़ देते हैं फिर यह प्रोटीन सक्रिय होकर स्निग्ध पेशियों के पोटेशियम द्वार खोल देते हैं, केल्शियम द्वार बंद कर देते हैं और कोशिका में विद्यमान केल्शियम को एंडोप्लाजमिक रेटिकुलम में बंद कर ताला जड़ देते हैं। पेशी कोशिका में केल्शियम की कमी के फलस्वरूप कोर्पस केवर्नोसस में स्निग्ध पेशियों, धमनियों का विस्तारण होता है और और कोर्पस केवर्नोसम के रिक्त स्थान में रक्त भर जाता है। यह रक्त से भरे केवर्नोसम रक्त को वापस ले जाने वाली शिराओं के जाल पर दबाव डाल कर सिकोड़ देते है, जिसके कारण शिश्न में अधिक रक्त प्रवेश करता है और कम रक्त वापस लौटता है। इसके फलस्वरूप शिश्न आकार में बड़ा और कड़ा हो जाता है तथा तन कर खड़ा हो जाता है। इस अवस्था को हम स्तंभन कहते हैं, जो संभोग के लिए अति आवश्यक है। संभोग सुख की चरम अवस्था पर मादा की योनि में पेशी संकुचन की एक श्रृंखला के द्वारा वीर्य के स्खलन के साथ संभोग की क्रिया संपन्न होती है। स्खलन के बाद स्निग्ध पेशियां और धमनियां पुनः संकुचित हो जाती हैं, रक्त की आवक कम हो जाती है, केवर्नोसम के रिक्त स्थान में भरा अधिकांश रक्त बाहर हो जाता है, शिराओं के जाल पर रक्त से भरे केवर्नोसम का दबाव हट जाता है और शिश्न शिथिल अवस्था में आ जाता है। अंत में एंजाइम फोस्फोडाइईस्ट्रेज-5 (PDE 5) cGMP को GMP चयापचित कर देते हैं।

उपचार

पी डी ई-5 इन्हिबीटर चार्ज करे मीटर
पिछले कई वर्षों से पी.डी.ई.-5 इन्हिबीटर्स जैसे सिलडेनाफिल (वियाग्रा), टाडालाफिल, वरडेनाफिल आदि को स्तंभनदोष की महान चमत्कारी दवा के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। ये शिश्न को रक्त भर कर कठोर बनाने वाले cGMP को निष्क्रिय कर GMP में बदलने वाले एंजाइम PDE-5 अणु के पर काट कर निष्क्रिय कर देते हैं। अतः शिश्न में cGMP पर्याप्त मात्रा रहता है और प्रचंड स्तंभन होता है। इन्हें बेच कर फाइजर और अन्य कंपनियां खूब पैसा बना रही हैं। इसके गैरकानूनी तरीके से प्रचार के लिए 2009 में फाइजर को भारी जुर्माना भरना पड़ा था। लेकिन इन दवाओं के कुछ घातक दुष्प्रभाव भी हैं जो आपको मालूम होना चाहिये। हालांकि चेतावनी दी जाती है कि नाइट्रेट का सेवन करने वाले हृदय रोगी इस दवा को न लें। लेकिन सच्चाई यह है कि यह दवा आपके हृदय के भारी क्षति पहुँचाती है। इसे प्रयोग करने से हृदय में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है, हृदयगति अनियमित हो जाती है और दवा बंद करने के बाद भी तकलीफ बनी रहती है। इससे आपके फेफड़ों में रक्त-स्राव भी हो सकता है और सेवन करने वाले के साथी को संक्रमण की संभावना बनी रहती है। इसके सेवन से व्यक्ति अचानक बहरा हो सकता है। इसका सबसे घातक दुष्प्रभाव यह है कि इसके प्रयोग से कभी कभी संभोग करते समय ही रोगी की मृत्यु हो जाती है। शायद आपको मालूम होगा कि अमेरिका में मार्च, 1998 से जुलाई 1998 के बीच वियाग्रा के सेवन से 69 लोगों की मृत्यु हुई थी।

इंजेक्शन देता है सेटिसफेक्शन

नब्बे के दशक में आपके चिकित्सक ने स्तंभनदोष के उपचार के लिए लिंग में लगाने के इंजेक्शन भी इजाद कर लिए थे। इनकी सफलता दर 95% है। आपका चिकित्सक इसके लिए पेपावरिन, फेंटोलेमीन या एलप्रोस्टेडिल आदि के इंजेक्शन प्रयोग करता है। आपकी अनुमति मिलते ही वह आपके लिंग में सुई लगा कर तुरंत आपकी बेटरी चार्ज करेगा और हनीमून एयरवेज़ की पहली फ्लाइट में चढ़ा देगा।

एम्यूज़मेंट के लिए म्यूज़ (MEDICATED URETHRAL SYSTEM FOR ERECTION)

यह उपचार 1997 में विकसित किया गया। इस में रक्त-वाहिकाओं को फैलाने वाले एल्प्रोस्टेडिल (PGE1) की एक चावल के दाने जितनी छोटी टिकिया को मूत्रमार्ग में प्लास्टिक की एक छाटी सी सीरिंज द्वारा घुसा दिया जाता है। अब शिश्न को थोड़ा अंगुलियों से दबाते हुए सहलाएं ताकि दवा पूरे शिश्न में फैल जाये। 10 मिनट बाद आपके लिंग में प्रचंड स्तंभन होता है जो 30 से 60 मिनट तक बना रहता है। इसके भी कुछ दुष्प्रभाव हैं जैसे अविरत शिश्नोत्थान, शिश्न का टेढ़ा होना या अचानक रक्तचाप कम हो जाना आदि।

 
कृत्रिम लिंग प्रत्यारोपण
यदि सारे उपचार नाकाम हो जायें, तब भी आप निराश न हों। आपका चिकित्सक कृत्रिम लिंग-प्रत्यारोपण का साजो-सामान भी अपने पिटारे में लेकर बैठा है। यह प्रत्यारोपण दो तरह का होता है। पहला घुमाने वाला होता है। प्रत्यारोपण के बाद लिंग को घुमा कर स्तंभन की स्थिति में लाते ही यह स्थिर हो जाता है। संसर्ग के बाद घुमा कर पुनः इसे विश्राम की अवस्था ले आते हैं। यह सस्ता जुगाड़ है। दूसरे प्रकार का मंहगा होता है परंतु बिलकुल प्राकृतिक तरीके से काम करता है। संसर्ग से पहले अंडकोष की थैली में प्रत्यारोपित किये गये पंप को दबा दबा कर शिश्न में प्रत्यारोपित सिलीकोन रबर के दो लंबे गुब्बारों में द्रव्य भर दिया जाता है, जिससे कठोर स्तंभन होता है। संसर्ग के बाद अंडकोष की थैली में ही एक घुंडी को घुमाने से लिंग में भरा द्रव्य वापस अपने रिजर्वायर में चला जाता है।

रोगी और उसकी साथी को प्रत्यारोपण संबन्धी सभी बांतों और दुष्प्रभावों के बारे में बतला देना चाहिये। क्योंकि इसके भी कई घातक दुष्प्रभाव हैं। जैसे पूरी सावधानियां रखने के बाद भी यदि संक्रणण हो जाये तो रोगी को बहुत कष्ट होता है और उपचार के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ती है। संक्रणण के कारण गेंगरीन हो जाने पर कभी कभी शिश्न का कुछ हिस्सा काटना भी पड़ सकता है। सर्जरी के बाद थोड़े दिन दर्द रहता है पर यदि दर्द ज्यादा बढ़ जाये और ठीक न हो तो कृत्रिम शिश्न को निकालना भी पड़ सकता है। लगभग 10% मामलों में कुछ न कुछ यांत्रिक खराबी आ ही जाती है और यह काम नहीं कर पाता है। कई बार रक्त स्राव भी हो जाता है जिससे रोगी को बड़ा कष्ट होता है।

आयुर्वेदिक उपचार

स्तंभनदोष के उपचार हेतु आयुर्वेद में कई शक्तिशाली और निरापद औषधियाँ हैं जैसे, शिलाजीत, अश्वगंधा, शतावरी, केशर, सफेद मूसली, जिंको बिलोबा, जिंसेन्ग आदि। शिलाजीत महान आयुवर्धक रसायन है जो स्तंभनदोष के साथ साथ उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा आदि रोगों का उपचार करता है और साथ ही वृक्क, मूत्रपथ और प्रजनन अंगों का कायाकल्प करता है।

आप निम्न बातों को भी हमेशा ध्यान में रखिए।

• ब्लड शुगर और रक्तचाप को नियंत्रित रखिए। अगर लगातार ऐसा रखेंगे तो तंत्रिकाओं व रक्तवाहिनियों में वह गड़बड़ी नहीं आएगी जो सेक्स क्षमता को प्रभावित करती है।

• मधुमेह के मरीज तंबाकू सेवन और धूम्रपान से बचें। तंबाकू रक्तवाहिनियों को संकरा बनाकर उनमें रक्त प्रवाह को कम या बंद कर देता है।

• अधिक शराब पीनें से बचें। यह मधुमेह पीड़ितों में सेक्स क्षमता को घटाता है और रक्तवाहिनियों को क्षति पहुंचाता है। अगर पीना जरूरी है तो पुरुष एक दिन में दो पैग और महिलाएं एक से ज्यादा न लें।

• नियमित ध्यान और योग करें। सुबह घूमने निकलें। इससे आप शारीरिक रूप से स्वस्थ और तनावमुक्त रहेंगे। रात्रि में ज्यादा देर तक काम न करें, समय पर सो जायें और पर्याप्त नींद निकालें। सप्ताह में एक बार हर्बल तेल से मसाज करवाएं। मसाज से यौनऊर्जा और क्षमता बढ़ती है। यदि आपका वजन ज्यादा है तो वजन कम करने की सोचें।

• संभोग भी दो या तीन दिन में करें। घर का वातावरण खुशनुमा और सहज रखें। गर्म, मसालेदार, तले हुए व्यंजनों से परहेज करें। पेट साफ रखें।

संभोग से समाधि की ओर ले जाये अलसी

आपका हर्बल चिकित्सक आपकी सारी सेक्स सम्बंधी समस्याएं अलसी खिला कर ही दुरुस्त कर देगा क्योंकि अलसी आधुनिक युग में स्तंभनदोष के साथ साथ शीघ्रस्खलन, दुर्बल कामेच्छा, बांझपन, गर्भपात, दुग्धअल्पता की भी महान औषधि है। सेक्स संबन्धी समस्याओं के अन्य सभी उपचारों से सर्वश्रेष्ठ और सुरक्षित है अलसी। बस 30 ग्राम रोज लेनी है।

• सबसे पहले तो अलसी आप और आपके जीवनसाथी की त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनायेगी। आपके केश काले, घने, मजबूत, चमकदार और रेशमी हो जायेंगे।

• अलसी आपकी देह को ऊर्जावान, बलवान और मांसल बना देगी। शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी गहेगी, न क्रोध आयेगा और न कभी थकावट होगी। मन शांत, सकारात्मक और दिव्य हो जायेगा।

• अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैट, जिंक और मेगनीशियम आपके शरीर में पर्याप्त टेस्टोस्टिरोन हार्मोन और उत्कृष्ट श्रेणी के फेरोमोन ( आकर्षण के हार्मोन) स्रावित होंगे। टेस्टोस्टिरोन से आपकी कामेच्छा चरम स्तर पर होगी। आपके साथी से आपका प्रेम, अनुराग और परस्पर आकर्षण बढ़ेगा। आपका मनभावन व्यक्तित्व, मादक मुस्कान और षटबंध उदर देख कर आपके साथी की कामाग्नि भी भड़क उठेगी।

• अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैट, आर्जिनीन एवं लिगनेन जननेन्द्रियों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाती हैं, जिससे शक्तिशाली स्तंभन तो होता ही है साथ ही उत्कृष्ट और गतिशील शुक्राणुओं का निर्माण होता है। इसके अलावा ये शिथिल पड़ी क्षतिग्रस्त नाड़ियों का कायाकल्प करते हैं जिससे सूचनाओं एवं संवेदनाओं का प्रवाह दुरुस्त हो जाता है। नाड़ियों को स्वस्थ रखने में अलसी में विद्यमान लेसीथिन, विटामिन बी ग्रुप, बीटा केरोटीन, फोलेट, कॉपर आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ओमेगा-3 फैट के अलावा सेलेनियम और जिंक प्रोस्टेट के रखरखाव, स्खलन पर नियंत्रण, टेस्टोस्टिरोन और शुक्राणुओं के निर्माण के लिए बहुत आवश्यक हैं। कुछ वैज्ञानिकों के मतानुसार अलसी लिंग की लंबाई और मोटाई भी बढ़ाती है।




इस तरह आपने देखा कि अलसी के सेवन से कैसे प्रेम और यौवन की रासलीला सजती है, जबर्दस्त अश्वतुल्य स्तंभन होता है, जब तक मन न भरे सम्भोग का दौर चलता है, देह के सारे चक्र खुल जाते हैं, पूरे शरीर में दैविक ऊर्जा का प्रवाह होता है और सम्भोग एक यांत्रिक क्रीड़ा न रह कर एक आध्यात्मिक उत्सव बन जाता है, समाधि का रूप बन जाता है।








कैंसर रोकें
इस बारे में वैज्ञानिक स्तर पर एक राय बन चुकी है कि उपयुक्त आहार और जीवनशैली का सही प्रबंधन करके कैंसर को काफी हद तक रोका जा सकता है ।
कैंसर आमतौर पर बहुत धीरे-धीरे पनपता है और जिसके लिए किसी व्यक्ति के जीवनकाल का काफी लम्बा हिस्सा चाहिए। इसका अपवाद है बचपन में ही पनप जाने वाले कैंसर जो मस्तिष्क या हड्डियों के पनपते हुए ऊतकों को प्रभावित करते हैं। ये बीमारियां आमतौर पर म्यूटेशन की मौजूदगी (गड़बड़ी वाले जीन) से संबंधित होती है, और ये जीन माता या पिता किसी से भी आ सकते हैं। जीवन में बाद में होने वाले कैंसर भी इन्हीं विरासत में मिले म्यूटेशन के कारण होते हैं, लेकिन आमतौर पर ट्यूमर की कोशिकाओं में बड़ी संख्या में म्यूटेशन होते हैं जो जीवन काल के दौरान हासिल होते रहते हैं। ये कथित सोमैटिक म्यूटेशन पर्यावरणीय रसायनों के कारण होते हैं जो शरीर के ब्लू प्रिंट - डी एन ए को नुकसान पहुंचाते हैं। डी एन ए को क्षति पहुंचाने वाले अणु खुद शरीर ही बनाने लगता है। उदाहरण के लिए, ऑक्सीजन रखने वाले अणु संक्षिप्त समय के लिए रसायन वाली एक विशेष संरचना हासिल कर लेते हैं जिससे वे डी एन ए के साथ बड़े दमखम के साथ अंतःक्रिया करने लगते हैं। ये ‘फ्री रैडिकल’ सांस लेने की सामान्य प्रक्रिया के दौरान पैदा होते रहते हैं। एंटीऑक्सीडैंट तत्व अपने अनूठे प्राकृतिक ठिकानों और अन्य पोषक तत्वों के साथ कुदरती मिश्रण बनाए रहते हैं और फलों और सब्जियों, साबुत अनाज़ों तथा भारतीय मसालों में मौजूद होते हैं। ये फ्री रैडिकल तत्वों को खत्म करके डी एन ए को ज्यादा क्षति पहुंचने से बचाते हैं। ये शरीर के ब्लू प्रिंट को नुकसान नही पहुंचने देते। ये भी दर्ज किया गया है कि भारत के शुद्ध और बिना मिलावट वाले मसाले और सब्जियां उन एंजाइम्स को रोक देती है जो कैंसर को बढ़ावा देते हैं।

इस तरह आप बच सकते हैं - डायबिटीज, ब्लड प्रैशर, हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कैंसर से …

योग से डायबिटीज दूर

इन दिनों डायबिटीज के मरीजों की संख्या में दिन-ब-दिन बढ़ोतरी हो रही है। वक्रासन, कुर्मासन, योगमुद्रा, शलभासन, धनुरासन आदि के माध्यम से काफी हद तक डायबिटीज को दूर किया जा सकता है।
लोनावला स्थित केवल्यधाम नामक योग संस्था में वैज्ञानिकों ने शोध कर पाया कि योगासनों के माध्यम से पूर्ण रूप से डायबिटीज को कंट्रोल किया जा सकता है। हालांकि इसके लिए मरीजों को नियमित एक घंटे योग करना जरूरी है। इसके साथ अपनी गतिविधियों पर भी नियंत्रण रखना होता है। पेनक्रियाज (क्लोम ग्रथि) ही रक्त में बढ़ी हुई इंसुलिन को नियंत्रित करती है, जिससे डायबिटीज को कंट्रोल किया जा सकता है। योगासन इन पेनक्रियाज पर जोर डालते हुए उसे दोबारा इंसुलिन के लिए तैयार करते हैं।
योग से तैयार होता है इंसुलिन
योग न सिर्फ डायबिटीज के लिए बल्कि वह अन्य शारीरिक बीमारियों को भी दूर करते हैं। हमारे शरीर में कोशिकाएं ग्लूकोज को तैयार नहीं कर पाती। इसके लिए इंसुलिन नामक हार्मोन की आवश्यकता पड़ती है, जो पेनक्रियाज के कमजोर होने से बराबर कार्य नहीं कर पाती हैं। आसनों का सीधा प्रभाव कोशिकाओं व पेनक्रियाज पर पड़ता है। डायबटिज खान-पान और तनाव को प्रमुख कारण माना गया है। खाने में कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा, अधिक शकर, मीठा और चॉकलेट आदि से होता है।
योग करो, रहो स्वस्थ
यूनिवर्सिटी के योग केंद्र के एचओडी डॉ. एसएस शर्मा बताते हैं कि योग के कुछ ऎसे आसन होते है जिनका असर सीधा शरीर के उन भागों पर पड़ता हैं, जो इंसुलिन बनाने में सहयोग करते हैं। साथ ही पेनक्रियाज को नियंत्रण में रखने की क्षमता भी बढ़ाते है। डायबिटीज को कंट्रोल करने वाले आसन शरीर के लिए बेहद लाभदायक हैं, जिसे नियमित करने से स्वस्थ रहा जा सकता है।

डायबिटीज का रोग बड़ा बुरा, बचने के रास्ते जानें जरा


यूं तो डायबिटीज दुनिया भर में फैली है, मगर भारत आज उसका सबसे बड़ा गढ़ बना हुआ है। इसका सबसे बड़ा कारण 21वीं सदी की जीवनशैली है। यह सोच सरासर गलत है कि डायबिटीज अधिक मीठा खाने से होती है। डायबिटीज उपज की षड्यंत्री कड़ियों में आधुनिक पुश-बटन लाइफस्टाइल का सबसे बड़ा हाथ है। जीवन पर जैसे-जैसे यांत्रिकता का वर्चस्व बढ़ा है, शारीरिक मेहनत-मशक्कत घटी है, खानपान के स्वाद बदले हैं, वैसे-वैसे डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ती गई है। गांववासियों की तुलना में शहरियों में डायबिटीज के पांच गुना अधिक होने के पीछे भी दोषयुक्त जीवनशैली ही कसूरवार है।

डायबिटीज रोकथाम के जन-अभियान में अगर हमें कामयाबी पानी है तो पहली शर्त इन षड्यंत्रकारी कड़ियों के बाबत साफ-सुथरी समझ विकसित करने की है। नवीनतम वैज्ञानिक शोध के अनुसार डायबिटीज की उपज में निम्न

जोखिमकारी तत्व प्रमुख रूप से जुड़े हैं : सबसे बड़ा कारण शारीरिक निष्क्रियता जैसे-जैसे जीवन रिमोट कंट्रोल, कॉर्डलैस और मोबाइल फोन, लैपटॉप और डेस्कटॉप, ऐलिवेटर और ऐस्केलेटर का गुलाम बनता गया है, वैसे-वैसे जीवन में न सिर्फ मेहनत-मशक्कत बल्कि शारीरिक हलचल के अवसर भी घटते जा रहे हैं। इसके फलस्वरूप शरीर में बनने वाला इंसुलिन अपना पैनापन खो देता है, वजन बढ़ते समय नहीं लगता और नतीजतन ब्लड शुगर पर से नियंत्रण छूटने का रिस्क लगातार बढ़ता है।

स्वास्थ्य और सौंदर्य का दुश्मन मोटापा : डायबिटीज उपज की जैव-रासायनिक कड़ियों में वजन बढ़ने का बड़ा हाथ है। टाइप-2 डायबिटीज के 80 प्रतिशत रोगी स्थूल शरीर के होते हैं। अध्ययनों में पुष्टि हुई है कि बॉडीमास इंडेक्स (बी़एम़आई़) के 25 से अधिक होने पर डायबिटीज उपजने की आशंका बढ़ती है। मोटापा इंसुलिन की ताकत घटाता है। शरीर में बनी इंसुलिन हमारी कोशिकाओं के द्वार पर ग्लुकोज के लिए लगे तालों को ठीक से खोल नहीं पाती। इसी से खून में ग्लुकोज का स्तर बढ़ता है। डायबिटीज के शुरू में वजन घटाने मात्र से शुगर पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

भूमिका ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल की: अगर ब्लड प्रेशर बढ़कर 140/90 से ऊपर चला जाए, अच्छे स्वास्थ्य का सूचक एच़डी़एल़ कोलेस्ट्रॉल घटकर 35 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से कम रह जाए, ट्राइग्लिसराइड बढ़कर 250 मिलीग्राम प्रतिशत से ऊपर चला जाए तो समझ लें कि डायबिटीज दस्तक दे रही है।

सावधानी हटी, दुर्घटना घटी! वर्तमान जीवनशैली में अगर कुछ दूसरी षड्यंत्री कड़ियां भी जुड़ जाएं तो डायबिटीज का जोखिम और बढ़ जाता है। इन पर किसी का वश तो नहीं चलता, लेकिन इनकी उपस्थिति में व्यक्ति को डायबिटीज के प्रति अतिरिक्त रूप से सावधान रहने की जरूरत होती है :

रक्त संबंधियों में डायबिटीज : परिवार में माता-पिता या भाई-बहन को डायबिटीज हो तो परिवार के अन्य सदस्यों को डायबिटीज होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है। इस जोखिम से निबटने का यही तरीका है कि जीवनशैली के प्रति थोड़ी अतिरिक्त चौकसी बरतें।

स्त्रियों में जोखिम के विशेष चिह्न् : अगर किसी स्त्री को पूर्व में पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज रही हो, गर्भवती होने पर ब्लड शुगर बढ़ गया हो या उसने नौ पाउंड से अधिक वजन के बच्चों को जन्म दिया हो, तो उसे जीवनभर डायबिटीज के प्रति चौकस रहना जरूरी है।

निजात पाएं कैसे: डायबिटीज से बचने के लिए सबसे कारगर तो यही है कि रक्त की जांच में शुगर के स्तर की तत्काल जांच कराई जाए। समय रहते विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह मिलने पर आप खानपान और जीवनशैली में मामूली बदलाव करके ज्यादा बड़े खतरों को टाल सकते हैं।

खुद बनिए अपने शिक्षक : डायबिटीज़ का मरीज़ अगर इस बीमारी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी रखता है, तो वह इससे लड़ने की ज्यादा कूवत रखता है। इसलिए बीमारी के बारे में पढ़ना हमेशा फायदेमंद ही साबित होगा। जब एक जागरूक मरीज़ अपने इलाज में पूरी रुचि रखेगा, तो उसमें बीमारी से मात न खाने की हिम्मत बनी रहेगी। ये बहुत अहम है।

वज़न घटाइए : अगर आप मोटापे के शिकार हैं, तो वज़न घटाइए। आमतौर पर जो लोग शारीरिक श्रम कम करते हैं, उनमें वज़न बढ़ने की प्रवृत्ति और फिर डायबिटीज़ का शिकार होने का खतरा ज्यादा होता है। कोई शख्स अगर अपने कुल वज़न का 5.7% भी कम कर ले, तो उसे डायबिटीज़ होने का खतरा 50% तक कम हो जाता है। लेकिन ये भी याद रखिये कि डायबिटीज़ मोटे-पतले, बच्चों, युवा, वृद्ध हर किसी को हो सकती है।

सक्रिय रहिएः अगर हर दिन आधे घंटे भी कसरत करेंगे, तो डायबिटीज़ की संभावना न के बराबर रह जाएगी। घर का छोटा मोटा काम खुद करने, सीढ़ी चढ़ने-उतरने या पैदल जाकर आसपास के काम निपटाने की आदत हो, तो अतिरिक्त समय देकर पार्क में जाने या जॉगिंग करने की खास जरूरत नहीं रह जाएगी। नहीं, तो सुबह की सैर पर जाने और पार्क में व्यायाम करने का नियम बनाकर सख्ती से उस पर अमल करना चाहिए।

शुगर लैवल की मॉनिटरिंग : जिन लोगों के परिवार में बुजुर्गो को डायबिटीज़ होती रही है, उन्हें इससे बचने के लिए अतिरिक्त सावधानी बरतने की ज़रूरत है। उन्हें खून की नियमित जांच करवाकर शुगर लैवल को नियंत्रित रखने का जतन करना चाहिए। शुगर लैवल की मॉनिटरिंग से ये संभव है। शुगर लैवल का चार्ट देखकर आप विशेषज्ञ से या मेडिकल जर्नल्स और वेबसाइट्स से खुद ही, इसे नियंत्रित रखने के टिप्स ले सकते हैं।

ये न समझें कि इंसुलिन का स्तर ऊंचा होने पर डायबिटीज़ नहीं होगी। असल में डायबिटीज़ का होना या न होना इंसुलिन के लैवल पर नहीं, बल्कि उसकी प्रभावशीलता पर निर्भर करता है। इंसुलिन का स्तर अक्सर उन लोगों में गड़बड़ा जाता है, जिन्हें खुद को अलग जीवनशैली में ढालना पड़ता है। ऐसे लोगों को समय समय पर शुगर टेस्ट कराते रहना चाहिए।

गर्भवती महिलाएं क्या करें : गर्भवती महिलाओं को डायबिटीज़ होने पर, कुल कैलोरी का 15 से 20 % वसायुक्त भोजन से ग्रहण करना चाहिए। इस लिहाज से खाने में जैतून और सरसों तेल, बादाम और अखरोट शामिल करना चाहिए। लेकिन तर-भोजन, घी, तला-भुना खाना, पेस्ट्रीज़ वगैरह से परहेज़ करना चाहिए। डायबिटीज़ से बचने के लिए गर्भवती महिलाओं को हर तीन घंटे बाद कुछ न कुछ खाना चाहिए। मतली और मॉर्निग सिकनैस का असर घटाने के लिए सुबह-सुबह काबरेहाइड्रेट से भरपूर स्नैक्स लेने चाहिए।

गर्भवती महिलाओं में डायबिटीज़ का असर होने वाले शिशु पर भी पड़ सकता है। इसका पता अक्सर गर्भधारण के 28वें सप्ताह तक चलता है। इसका डॉक्टरी इलाज तो है ही, साथ-साथ खानपान में बदलाव और नियमित सैर से भी फायदा होता है। इस दरम्यान भ्रूण के विकास के लिए अतिरिक्त इनर्जी की जरूरत भी होती है। इसके लिए ठोस आहार की मात्र बढ़ानी चाहिए। फाइबर युक्त भोजन को तवज्जो देनी चाहिए। फल, सब्जी और दालों के संतुलित आहार से ब्लड शुगर और ग्लूकोज़ का लैवल सही रहता है। प्रोटीन की अतिरिक्त ज़रूरत के लिए दूध, अंडा, मीट, मछली, दाल, सोयाबीन, और मूंगफली लेना चाहिए।

योग की भूमिका : डायबिटीज़ से पार पाने में योगासन का योगदान है। व्यायाम से शरीर में ग्लूकोज़ का समावेश संतुलित और बेहतर रहता है। नियमित योगासन से शरीर का मेटाबॉलिज्म, अंत:स्नवी तंत्र और नर्वस सिस्टम फिट रहता है। योगमुद्रासन से पेट की कसरत होती है, जो कब्ज मिटाने और पाचन में मदद करती है। मेरु-चक्रासन और धनुरासन भी कारगर हैं।