हार्मोन
हाइपोथेलेमिक पिट्युइटरी एक्सिस दोष, औषधि या शल्यक्रिया द्वारा वंध्यकरण (Castration), रजोनिवृत्ति, प्रिमेच्योर ओवेरियन फेल्यर और गर्भ-निरोधक गोलियां स्त्री सेक्स विकार के हार्मोन संबन्धी कारण हैं, जिनमें मुख्य लक्षण शुष्क योनि (Dry Vagina), यौन-इच्छा विकार और कामोत्तेजना विकार हैं।
औषधियां
कई तरह की औषधियां विशेषतौर पर मनोरोग में दी जाने वाली सीरोटोनिन रिअपटेक इन्हिबिटर्स (SSRI) स्त्रियों में सेक्स संबन्धी विकार का महत्वपूर्ण कारण है।
यौन उत्तेजना चक्र को प्रभावित करने वाले रोग
आर्थ्राइटिस
यदि स्त्री को जोड़ों में दर्द और सूजन हो तो मुक्त लैंगिक-संसर्ग में कुछ अड़चन या दर्द होना तो स्वभाविक है, लेकिन संभोगपूर्व दर्द निवारक दवा, स्नेहन द्रव्य (Lubricant) या गर्म पानी की थैली और संभोग की आसान मुद्राओं (जिनके प्रयोग से दर्द कर रहे जोड़ों पर दबाव न पड़े) का प्रयोग करके संभोग का आनंद लिया जा सकता है।
हृदयरोग
हृदयरोग में अधिक श्रम करने पर छाती में दर्द होना या पैरों में रक्त-प्रवाह कम होना सामान्य लक्षण हैं। लेकिन स्त्रियों को लैंगिक संसर्ग में इतना श्रम नहीं होता है कि वे संभोग न कर पाएं। जैसा भी हो चिकित्सक की राय ले लेनी चाहिये।
डायबिटीज
डायबिटीज से पीड़ित स्त्रियों की नाड़ियां क्षतिग्रस्त होना शुरू हो जाती हैं, जिससे उन्हें कामोत्तेजना देर से होना, चरम-आनंद मिलने में कठिनाई आदि लक्षण होना सामान्य है। डायबिटीज को नियंत्रण में रखने से ये विकार ठीक हो जाते हैं या इनके लिए उपचार लिया जा सकता है।
एपीलेप्सी
एपीलेप्सी मस्तिष्क को जाने वाले नाड़ी संदेशों का शोर्ट सर्किट कर देती है जिससे यौन-इच्छा और कामोत्तेजना दोष होना स्वाभाविक है।
वृक्करोग
किडनी में कोई विकार होने पर मूत्रपथ और जननेन्द्रियों में संक्रमण (UTI) होना स्वाभाविक है। स्त्रियों का मूत्रपथ अपेक्षाकृत छोटा होता है। हमेशा जननेन्द्रियों को स्वच्छ रखना चाहिये और संक्रमण से बचना चाहिये।
मेरुरज्जु आघात
स्पाइनल कोर्ड में कोई भी आघात होने पर लैंगिक संसर्ग (Sexual Intercourse) प्रभावित होना स्वाभाविक बात है। इससे जननेन्द्रियों की नाड़ियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं जिससे योनि में स्नेहन द्रव्य का स्राव कम होता है, हालांकि वे संसर्ग में चरम-आनंद प्राप्त करती रहती हैं।
स्ट्रोक
मस्तिष्क की वाहिकाएं अवरुद्ध होने पर हाथ पैरों में लकवा पड़ना, पेशियों का कमजोर होना, हाथ पैरों में हरकत न होना जैसी तकलीफें होती हैं। इनके कारण लैंगिक संसर्ग प्रभावित होगा ही। लेकिन नाड़ियां क्षतिग्रस्त नहीं होती है, इसलिए हल्के-फुल्के बदलाव और जुगाड़ के साथ संभोग किया जा सकता है।
थायरॉयड रोग
थायरॉयड हार्मोन के असंतुलन से मासिक धर्म संबन्धी अनियमितताएं, यौन-इच्छा दोष हो सकता है तथा अन्य सह-घटक भी सेक्स को प्रभावित करते हैं। थायरॉयड रोग के उपचार से यौन विकार भी ठीक हो जाते हैं।
रजोनिवृत्ति (Menopause)
रजोनिवृत्ति में स्त्री के अंडाशय ईस्ट्रोजन हार्मोन बनाना बंद कर देते हैं जिसके फलस्वरूप शरीर में कई परिवर्तन होते हैं, जो उसके लैंगिक संसर्ग को भी प्रभावित करते हैं। एक मुख्य परिवर्तन योनि का शुष्क होना है। योनि में चिकने स्राव न होने से संभोग कष्टप्रद हो जाता है। ईस्ट्रोजन कम होने से योनि की पेशियां सिकुड़ जाती हैं और जख्म लगने की संभावना ज्यादा रहती है। इसके उपचार हेतु ईस्ट्रोजन की गोलियां या क्रीम दी जाती हैं।
सामान्यतः रजोनिवृत्ति में स्त्रियों की काम-इच्छा प्रभावित नहीं होती है और वे जीवन के आखिरी पड़ाव में भी लंबे समय तक लैंगिक संसर्ग का आनंद लेती रहती हैं, बशर्ते स्वास्थ्य अच्छा बना रहे और अपने जीवनसाथी से संबन्धों में मधुरता बनी रहे।
फिर भी उम्र ढलने के साथ साथ स्त्री के लैंगिक व्यवहार में फर्क तो आता है, जैसे उसे उत्तेजित होने में ज्यादा समय लगता है और चरम-आनंद की प्राप्ति भी थोड़ी कठिनाई तथा विलंब से होती है। कई स्त्रियों को चरम-आनंद की स्थिति में योनि की पेशियों के संकुचन भी अपेक्षाकृत कम होते हैं। दूसरी ओर इस उम्र तक आते आते उनके साथी भी स्तंभनदोष के शिकार हो ही जाते हैं और कई बार ऐसे दम्पत्ति लैंगिक संसर्ग के स्थान पर हाथों या मुख से एक दूसरे की जननेन्द्रियों को उत्तेजित करके या अपने यौनांगों को साथी के यौनांगों से रगड़ कर ही अपनी पिपासा शांत कर लेते हैं। इस तरह इस उम्र में भी कई दम्पत्ति नियमित यौन क्रिड़ाएं करते हैं और संतुष्ट होते हैं।
रजोनिवृत्ति में शारीरिक परिवर्तन
त्वचा
स्वेदन और सेबेशियस ग्रंथियों का स्राव कम होना, स्पर्श से कामोत्तेजना कम होना।
स्तन
स्तन में फैट की मात्रा कम होना, यौन-उत्तेजना होने पर स्तनों में फुलाव और स्तनाग्रों में संकुचन कम होना।
योनि
योनि के मांसल खोल की लंबाई और लचीलापन कम होना, योनि के गीलेपन में कमी, योनि का पीएच जो सामान्यतः 3.5 से 4.5 के बीच रहता है बढ़ कर 5 या ज्यादा हो जाना और योनि की आंतरिक झिल्ली का पतला हो जाना।
आंतरिक जननेन्द्रियां
डिम्बाशय (Ovary) और डिम्बवाही नलियों (Fallopian tubes) का छोटा होना, डिम्बाशय कूप अविवरता (Ovarian Follicular Atresia), गर्भाशय का वजन 30% से 50% कम होना, गर्भाशय की ग्रीवा का आकर्ष और श्लेष्मा (Mucous) का स्राव कम होना।
मूत्राशय
मूत्र नलिका (Ureter) और मूत्राशय त्रिकोण (Trigone of bladder) का अविवरता।
कैंसर
कैंसर का तो आगमन ही स्त्री को आतंकित, आशंकित और आहत कर देता है। उसे अपना लैंगिक आनंद तो अंधकारमय दिखाई देता ही है साथ में अपना आत्म-स्वाभिमान, सौंदर्य, आकर्षण या शरीर काई अंग खो जाने की कल्पना भी भयभीत करती रहती है। एक ओर मृत्यु और पति के बेवफा हो जाने खौफ़ बना रहता है तो दूसरी ओर सर्जरी, कीमो और रेडियो की त्रिधारी तलवार चौबीसों घंटे सिर पर लटकी रहती है। दुख की इस घड़ी में पति के प्यार की एक झप्पी जादू के समान काम करती है।
महिला सेक्स विकार के मनोवैज्ञानिक पहलू
स्त्री लैंगिक विकार के कारणों में भौतिक पहलुओं के साथ साथ मनोवैज्ञानिक पहलू भी बहुत महत्व रखते हैं।
व्यक्तिगत
धार्मिक वर्जना, सामाजिक प्रतिबंध, अहंकार, हीन भावना।
पुराने कटु अनुभव
पूर्व लैंगिक, शाब्दिक या शारीरिक प्रताड़ना, बलात्कार, सेक्स संबन्धी अज्ञानता।
साथी से मतभेद
संबन्धों में कटुता, विवाहेतर लैंगिक संबन्ध, वर्तमान लैंगिक, शाब्दिक या शारीरिक प्रताड़ना, कामेचछा मतभेद , वैचारिक मतभेद, संवादहीनता।
दुनियादारी
आर्थिक, काम-काज या पारिवारिक समस्याएं, परिवार में किसी की बीमारी या मृत्यु, अवसाद (Depression)।
निदान
स्त्रियों के सेक्स विकारों के कारण और उपचार के मामले में चिकित्सक दो खेमों में बंट गये हैं। हमें दोनों पर ध्यान देना है और दोनों के हिसाब से ही उपचार करना है।
पहला खेमा वाहिकीय परिकल्पना को महत्व देता है और मानता है कि किसी बीमारी (जैसे डायबिटीज और एथरोस्क्किरोसिस), प्रौढ़ता या तनाव की वजह से जननेन्द्रियों में रक्तप्रवाह कम होने से योनि में सूखापन आता है तथा भगशिश्न की संवेदना कम होती है जिससे यौन उत्तेजना प्रभावित होती है। ये लोग ऐसी औषधियों और मरहम प्रयोग करने की सलाह देते हैं जो जननेन्द्रियों में रक्तप्रवाह बढ़ाती हैं।
दूसरा खेमा हार्मोन की थ्योरी पर ज्यादा विश्वास रखता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ स्त्रियों के शरीर में स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन और पुरूष हार्मोन टेस्टोस्टीरोन का स्राव कम होने लगता है। ईस्ट्रोजन के कारण ही स्त्रियों में यौन-इच्छा पैदा होती है। टेस्टोस्टिरोन पुरुष हार्मोन है लेकिन यह स्त्रियों में भी कई महत्वपूर्ण कार्य करता है। स्त्रियों में इसका स्राव पुरूषों के मुकाबले 5% ही होता है। यह यौवन के आगमन के लिए उत्तरदायी है जिसमें किशोर लड़कियों के जननेन्द्रियों और बगल में बाल आने शुरू हो जाते हैं। स्तन और जननेन्द्रियाँ संवेदनशील हो जाती हैं और इनमें काम-उत्तेजना होने लगती है।
पुरुष हार्मोन्स को एन्ड्रोजन के नाम से भी जाना जाता है। ये स्त्रियों में कामोत्तेजना के लिए प्रमुख हार्मोन हैं। साथ ही यह स्त्रियों में हड्डियों के विकास और घनत्व बनाये रखने के लिए भी अत्यंत आवश्यक हैं।
स्त्रियों के शरीर में सबसे ज्यादा टेस्टोस्टिरोन का स्राव प्रजनन काल में होता है। इस हार्मोन की अधिकतर मात्रा एक विशिष्ट बंधनकारी ग्लोब्युलिन से जुड़ी रहती है। इसका मतलब उपरोक्त महत्वपूर्ण कार्यों के लिए इसकी एक सिमित मात्रा ही रक्त में विद्यमान रहती है। रक्त के परीक्षण द्वारा हम रक्त में मुक्त और बंधित टेस्टोस्टिरोन का स्तर जान सकते हैं और सही निदान कर सकते हैं।
रजोनिवृत्ति में स्त्रियों के अंडाशय ईस्ट्रोजन और टेस्टोस्टिरोन दोनों का ही स्राव कम कर देते हैं। टेस्टोस्टिरोन की कमी के मुख्य लक्षण यौन इच्छा कम होना, लैंगिक कल्पनाएं, स्वप्न और विचार कम आना, स्तनाग्र, योनि और भगशिश्न की स्पर्श संवेदना कम होना है। स्वाभाविक है कि काम-उत्तेजना और चरम-आनंद की अनुभूति भी प्रभावित होगी।
साथ ही शरीर की मांस-पेशियां भी पतली होने लगती हैं, जननेन्द्रियों के बाल कम होने लगते हैं और प्रजनन अंग सिकुड़ने शुरू हो जाते हैं। योनि और आसपास के ऊतक घटने लगते हैं। संभोग में दर्द होने लगता है और सिर के बाल भी पुरुषों की भांति कम होने लगते हैं।
एक तीसरा सिद्धांत और सामने आया है जिसे अतृप्ति या असंतोष परिकल्पना कहते हैं, इसे भी ठीक से समझना जरूरी है। कई स्त्रियों में लैंगिक समस्याओं का कारण हार्मोन्स की कमी या जननेन्द्रियों में रक्त का कम प्रवाह न होना होकर संभोग के समय भगशिश्न और योनि का पर्याप्त घर्षण नहीं होना है। युवा स्त्रियों में यह बहुत महत्वपूर्ण है। कई बार स्त्री और पुरूष सेक्स के मामले में खुलकर वार्तालाप नहीं करते हैं। जिससे वे एक दूसरे की इच्छाओं, पसंद नापसंद, वरीयताओं से अनभिज्ञ रहते हैं। पुरूष को मालूम नहीं हो पाता कि वह स्त्री को किस तरह कामोत्तेजित करे, स्त्री को कौनसी यौन-क्रिड़ाएं ज्यादा भड़काती हैं, उसके शरीर के कौन से क्षेत्र वासनोत्तेजक (Erogenous) हैं और कौनसी लैंगिक मुद्राएं उसे जल्दी चरम-आनंद देती हैं। इस तरह स्त्री को मिलती है सेक्स में असंतुष्टि, आत्मग्लानि, अवसाद और लैंगिक संसर्ग से विरक्ति। यदि समय रहते समस्या का निदान और उपचार न हो पाये तो पहले आपस में तकरार, फिर संबंधों में दरार, आगे चल कर विवाहेतर सम्बंध और तलाक होने में भी देर नहीं लगती।
कुछ ही वर्षों पहले तक माना जाता था कि अधिकतर (90% से ज्यादा) स्त्री लैंगिक रोग मनोवैज्ञानिक कारणों से होते हैं। लेकिन आज धारणायें बदल गयी हैं। अंततः चिकित्सक और शोधकर्ता इसके निदान और उपचार के नये-नये आयाम ढ़ूंढ रहे हैं। आजकल देखा जा रहा है कि स्त्री लैंगिक रोग के ज्यादातर मामले किसी न किसी शारीरिक रोग के कारण हो रहे हैं, न कि मनोवैज्ञानिक कारणों से। इसलिए उपचार भी संभव हो सका है।
चिकित्सक को चाहिये कि वह एकांत और शांत परामर्श कक्ष में स्त्री को अपने पूरे विश्वास में लेकर सहज भाव से विस्तार में पूछताछ करे। रोगी से उसकी माहवारी, लैंगिक संसर्ग, व्यक्तिगत या पारिवारिक सूचनाएं, वर्तमान या अतीत में हुई कोई लैंगिक या अन्य प्रताड़ना आदि के बारे में बारीकी से पूछा जाना चाहिये। रोगी के साथी से भी अच्छी तरह पूछताछ की जानी चाहिये। एक ही प्रश्न कई तरीके से पूछना चाहिये ताकि रोगी की समस्या को समझने में कोई गलती न हो। बातचीत के दौरान उसे बीच-बीच में रोगी की आँखों में आँखे डाल कर बात करनी चाहिये और शारीरिक मुद्राओं पर भी पूरा ध्यान रखना चाहिये। स्त्री को भी बिना कुछ छुपाये अपनी समस्या स्पष्ट तरीके से चिकित्सक को बता देनी चाहिये। चिकित्सक को उन सारी औषधियों के बारे में भी बता देना चाहिये जिनका वह सेवन कर रही है। हो सकता है उसकी सारी तकलीफ कोई दवा कर रही हो और मात्र एक दवा बदलने से ही उसकी सारी तकलीफ मिट जाये।
इसके बाद चिकित्सक को बड़े ध्यान से रोगी का क्रमबद्ध तरीके से परीक्षण करना चाहिये ताकि की रोग यहीं चिन्हित कर लिए जायें।
यंत्रों द्वारा योनि परीक्षण
योनि में रक्त के प्रवाह और संचय को फोटोप्लेथीस्मोग्राफी द्वारा नापा जाता है। इसमें एक टेम्पून के आकार का एक्रिलिक यंत्र योनि में डाला जाता है जो प्रकाश की किरणों द्वारा रक्त के बहाव और तापमान को नापता है। लेकिन यह चरम-आनंद की अवस्था में बहाव और तापमान को नापने में असमर्थ है। योनि का पीएच लेवल भी नापा जाता है। यूरोलोजिस्ट पीएच नाप कर योनि में संक्रमण करने वाले कीटाणुओं का अनुमान लगा लेते हैं। रजोनिवृत्ति में हार्मोन और योनि में स्राव की मात्रा कम होने से पीएच बढ़ कर 5 या ज्यादा ज्यादा हो जाता है। भगशिश्न तथा भगोष्ठ की दबाव और तापमान के प्रति संवेदना को बायोथीसियोमीटर नामक यंत्र द्वारा नापा है।
उपचार
कई बार स्त्रियों की सेक्स समस्याओं के उपचार की आवश्यकता ही नहीं होती है। बस आप अपनी समस्या खुल कर साथी को बताते रहें, आपके साथी से तालमेल अच्छा हो तो छोटी मोटी समस्याएं आप मिल कर ही हल कर लेंगे। जरूरत सिर्फ अपनी नीरस और बोरिंग हो चले सेक्स रूटीन में जोश और रोमांस का तड़का लगाने और छोटी छोटी बुनियादी बातों को व्यवहार में लाने की है।
बुनियादी उपचार सूत्र
शिक्षा
जननेन्द्रियों की संरचना और कार्यप्रणाली, माहवारी, गर्भावस्था, रजोनिवृत्ति, प्रौढ़ता आदि के बारे में स्त्रियों को किताबों, प्रदर्शनियों और टीवी के जरिये पूरी जानकारी दी जानी चाहिये। जब भी रोगी को कोई नई बीमारी का निदान हो या नई दवा दी जाये या कोई शल्यक्रिया हो तो उसे संबन्धित लैंगिक मुद्दों के बारे चर्चा की जानी चाहिये।
तौरतरीकों में बदलाव
लैंगिक संसर्ग के समय बातचीत करें, एकदूसरे की पसंद नापसंद, वरीयताएं जानें और एकदूसरे की उत्तेजना भड़काने वाली यौन-क्रियाएं मालूम करें। लैंगिक संसर्ग की मुद्राएं, समय और स्थान बदल कर जीवन में नयापन लायें। कभी कभी रोमांस के लिए एक दिन निश्चित करें, शहर से बाहर निकलें, सैर-सपाटा मौज मस्ती करें और किसी रोमांटिक रिसोर्ट में रात की पारी खेलें।
इन्हें भी आजमायें
कभी-कभी सप्ताहांत में दोनों साथी रूमानी हो जाये, अगरबत्ती जला कर फिजा को महकाये, शमां जला कर दिव्य माहौल बनाये, सपनों की दुनिया सजायें, बारी-बारी से एक दूसरे का प्यार से किसी अच्छे हर्बल तेल द्वारा मसाज करें, गुफ्तगू करें। एक दूसरे को बतायें कि उन्हें कहाँ और कैसा स्पर्श अच्छा लगता है। ऐसा मसाज से दम्पत्तियों के ऊर्जा चक्र खुल जाते हैं और वे एक दूजे में खो जाते हैं।
कीगल व्यायाम
लाभ
• मूलाधार की पेशियां मजबूत होती हैं।
• चरम-आनंद की तीवृता बढ़ती है।
• चरम-आनंद के समय मूत्र निकल जाने की समस्या ठीक होती है।
• संभोग के समय ध्यान का विकर्षण (Distraction) होता है।
• संभोग के आनंद की अनुभूति बढ़ती है।
विधि
विधि सरल है स्त्री योनि में अपनी अंगुली डाल कर मूलाधार (Perineum) की मांसपेशियों को उसी तरह धीरे धीरे दस तक गिनते हुए सिकोड़ें मानो मूत्र-त्याग की क्रिया को रोकना हो, फिर तीन गिनने तक मांसपेशियों को सिकोड़ें रहें और उसी तरह धीरे धीरे दस तक गिनते हुए मांसपेशियों को ढीला छोड़ें। इसे दस से पंद्रह बार रोज करें। बाद में इसे किसी भी समय, कहीं भी, किसी भी मुद्रा में किया जा सकता है।
यौन-इच्छा विकार
यौन-उच्छा विकार का उपचार आसान नहीं है। रजोनिवृत्ति-पूर्व यौन-इच्छा विकार कई बार आधुनिक जीवनशैली के घटकों जैसे बच्चों की पढ़ाई या जिम्मेदारियों का बोझ, ऑफिस के कामों का मनोवैज्ञानिक दबाव, दवाइयां या अन्य सेक्स विकार आदि के कारण भी होता है। कई बार लैंगिक संसर्ग में आई उकताहट से भी यौन-इच्छा कम हो जाती है। रजोनिवृत्ति के दौरान यौन-इच्छा विकार के उपचार हेतु ईस्ट्रोजन का प्रयोग किया जाता है।
कामोत्तेजना विकार
कामोत्तेजना विकार के उपचार में अच्छे स्नेहन द्रव्य प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। ज्यादा उम्र की स्त्रियों में कई बार अपर्याप्त घर्षण के कारण उत्तेजना नहीं होती है। तब चिकित्सक उन्हें मैथुनपूर्व गर्म शावर लेने, मैथुनपूर्व कामक्रिड़ाएं बढ़ाने आदि की सलाह देते हैं।
चरम-आनंद विकार (Anorgasmia)
ऐनोर्गेज्मिया का उपचार संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा और सेन्सेट फोकस द्वारा किया जाता है। इसके औषधीय उपचार में सिलडेनाफिल और बूप्रोपियोन का प्रयोग किया जाता है। लेकिन इनके नतीजे बहुत अच्छे नहीं हैं और ये एफ.डी.ए. द्वारा प्रमाणित भी नहीं है।
कष्टप्रद संभोग
के कई भौतिक कारण हो सकते हैं और उनका समाधान उपचार का पहला कदम होना चाहिये। यदि कारण मालूम न हो सके या अस्पष्ट हो तो उपचार बहु-आयामी और बहु-विषयक होना चाहिये। आवश्यकतानुसार मनोचिकित्सा भी देनी चाहिये जिसमें पुरुष को भी साथ रखना चाहिये और शारीरिक, भावनात्मक और आपसी तालमेल संबन्धी सभी मुद्दों के समाधान हो जाने चाहिये।
लैंगिक दर्द विकार के कुछ कारणों जैसे वलवर वेस्टिब्युलाइटिस और वेजीनिसमस के उपचार में फिजियोथैरेपी (आपसी प्रतिक्रिया, श्रोणि की पेशियों का विद्युत उत्तेजन, श्रोणि का सोनोग्राम, वेजाइनल डाइलेटर्स) काफी लाभदायक है।
योनि आकर्ष के उपचार में मनोचिकित्सक धीरे धीरे रोगी को विश्वास में लेता है। योनि का परीक्षण यह कह कर करता है कि दर्द होने पर परीक्षण रोक देगा और आहिस्ता आहिस्ता योनि को फैला देता है। इस तरह रोगी का डर निकाल देता है।
वेजीनिसमस के औषधीय उपचार हेतु वेजाइनल एट्रोफी में ईस्ट्रोजन, वल्वोवेजाइनल केन्डायसिस में फंगसरोधी और वलवर वेस्टिब्युलाइटिस में एन्टीडिप्रेसेन्ट आदि प्रयोग करते हैं।
औषधियां
यदि आपकी समस्या किसी भौतिक कारण से है तो चिकित्सक आपके उपचार की योजना बतला देगा। योजना में दवाइयां, जीवनशैली में छोटा-मोटा बदलाव या शल्यक्रिया का सुझाव भी हो सकता है। हो सकता है वह आपको मनोचिकित्सक से भी संपर्क करने को कहे। कुछ प्रभावशाली उपचार इस तरह हैं।
योनि स्नेहन द्रव्य
शुष्क योनि के उपचार हेतु बाजार में विभिन्न स्नेहन क्रीम, जेल या सपोजीटरी मिलते है। ये बिना चिकित्सक प्रपत्र के भी खरीदे जा सकते हैं। पानी में घुलनशील क्रीम या जेल अच्छे रहते है। लेटेक्स रबर के बने कंडोम तेल में घुलनशील स्लेहन द्रव्य जैसे पेट्रोलियम जैली, मिनरल तेल या बेबी ऑयल से क्रिया कर फट सकते हैं।
ईस्ट्रोजन क्रीम
रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली शुष्क योनि तथा योनि क्षय में ईस्ट्रोजन क्रीम का प्रयोग काफी लाभप्रद रहता है।
सिलडेनाफिल
सिलडेनाफिल पुरुषों के स्तंभनदोष में काफी प्रयोग की जाती है। स्त्रियों में काम-उत्तेजना पैदा करने के लिए एलोपैथी के पास अभी कोई दवा नहीं है। इसलिए सिलडेनाफिल को स्त्रियों में भी जुगाड़ के रूप में प्रयोग किया गया है, पर नतीजे ज्यादा अच्छे नहीं हैं। कुछ ही स्त्रियों की काम-उत्तेजना में लाभ देखा गया है। एफ.डी.ए. ने भी इसे स्त्रियों में प्रयोग करने के लिए प्रमाणित नहीं किया है। इसके पार्श्वप्रभाव सिरदर्द, जुकाम, चेहरे पर लालिमा, असामान्य दृष्टि, अपच आदि हैं। कभी-कभी उसके प्रयोग से रक्तचाप इतना कम हो सकता है कि घातक दिल का दौरा पड़ सकता है। नाइट्रेट सेवन करने वालों को सिलडेनाफिल लेना जानलेवा साबित हो सकता है। ।
होर्मोन प्रतिस्थापना उपचार (Hormone Replacement Therapy)
रजोनिवृत्ति से होने वाले विकारों के उपचार हेतु होर्मोन्स का प्रयोग किया जाता है। अकेला ईस्ट्रोजन उन स्त्रियों को दिया जाता है जिनका गर्भाशय शल्यक्रिया द्वारा निकाल दिया गया है जबकि गर्भाशय को साथ लिए जी रही स्त्रियों को ईस्ट्रोजन-प्रोजेस्टिन (कृत्रिम प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन) दिया जाता है क्योंकि प्रोजेस्टिन ईस्ट्रोजन की अधिकता के दुष्प्रभाव (गर्भाशय कैंसर) से गर्भाशय की सुरक्षा करते हैं। वर्षों तक यह समझा जाता रहा कि रजोनिवृत्ति में ईस्ट्रोजन-प्रोजेस्टिन उपचार स्त्रियों को हृदयरोग, उच्च-कॉलेस्टेरोल, कैंसर आंत, एल्झाइमर रोग और अस्थिक्षय (Osteoporosis) से बचाता है। परंतु 2002 में हुई खोज के अनुसार रजोनिवृत्ति में ईस्ट्रोजन या इस्ट्रोजन-प्रोजेस्टिन उपचार से स्तन कैंसर, हृदयाघात, स्ट्रोक और अंडाशय कैंसर का जोखिम बहुत बढ़ जाता है। होर्मोन उपचार उन स्त्रियों को बहुत राहत देता है जिनको रजोनिवृत्ति के कारण शुष्क योनि या संभोग में दर्द होता है साथ में हॉट फ्लशेज और अनिद्रा में भी लाभ मिलता है। अनुसंधानकर्ता छोटे अंतराल के लिए दिये गये होर्मोन उपचार को तो सुरक्षित मानते हैं लेकिन लंबे समय तक होर्मोन उपचार देने के पक्ष में नहीं हैं। पांच वर्ष के बाद होर्मोन उपचार बंद कर दिया जाना चाहिये। स्त्रियों में होर्मोन उपचार शुरू करने का निर्णय सोच समझ कर लिया जाना चाहिये और रोगी को इसके फायदे नुकसान अच्छी तरह समझा देने चाहिये।
टेस्टोस्टिरोन
वैज्ञानिकों के पास पर्याप्त सबूत हैं कि स्त्रियों में काम-इच्छा, काम-ज्वाला और लैंगिक संसर्ग के स्वप्न और विचारों को भड़काने में टेस्टोस्टिरोन बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसीलिए इसे स्त्रियों के लिए हार्मोन ऑफ डिजायर कहा जाता है । अब प्रश्न यह है कि इसे कब देना चाहिये। अनुभवी चिकित्सक कहते हैं कि रजोनिवृत्ति में यदि काम-इच्छा का अभाव हो और रक्त में टेस्टोस्टिरोन का स्तर भी कम हो तो इसे अवश्य देना चाहिये।
इसके लिए त्वचा पर चिपकाने वाले टेस्टोस्टीरोन के पेच मिलते हैं। इसकी मात्रा 300 माइक्रोग्राम प्रति दिन है और इसे तीन महीनें तक आजमाना चाहिए। यदि तीन महीनें में फायदा न हो तो बन्द कर दें। इसके पार्श्व प्रभाव जैसे सिर के बाल उड़ना, दाड़ी मूँछ उग आना, मर्दों जैसी आवाज हो जाना आदि जैसे ही दिखे, इसका सेवन बन्द कर देना चाहिए। वैसे मैं आपको टेस्टोस्टीरोन लेने की सलाह नहीं दूंगा, क्योंकि लाभ की संभावना कम और पार्श्व प्रभावों की संभावना ज्यादा रहती है। वैसे भी यह स्त्रियों में एफ.डी.ए. द्वारा प्रमाणित नहीं है।
पीटी-141 नेजल स्प्रे
फीमेल वियाग्रा के नाम से चर्चित पीटी-141 नेजल स्प्रे पेलेटिन टेक्नोलोजीज जोर शोर से बाजार में उतारने की तैयारी कर रही थी और कहा जा रहा था कि जैसे ही स्रियां अपने नाक में इसका स्प्रे लेंगी, 15 मिनट में उनकी कामेच्छा एकदम भड़क उठेगी। लेकिन हृदय पर इसके इतने घातक कुप्रभाव देखे गये कि इसकी शोध पर तुरंत रोक लगानी पड़ी। फिर भी कुछ लोग इसे बेच रहे हैं अतः आप इसे भूल कर भी नहीं खरीदें।
वैकल्पिक चिकित्सा
आपने ऊपर पढ़ा है कि ऐलोपैथी में स्त्री यौन विकारों का उपचार पूर्णतया विकसित नहीं हुआ है और अभी प्रयोगात्मक अवस्था में ही है। लेकिन आयुर्वेद यौन रोगों में 5000 वर्ष पूर्व से शतावरी, शिलाजीत, अश्वगंधा, जटामानसी, सफेदमूसली जैसी महान औषधियाँ प्रयोग कर रहा है। ये पूर्णतः निरापद और सुरक्षित हैं और जादू की तरह कार्य करती हैं।
संभोग से समाधि की ओर ले जाये अलसी
अलसी आधुनिक युग में स्त्रियों की यौन-इच्छा, कामोत्तेजना, चरम-आनंद विकार, बांझपन, गर्भपात, दुग्धअल्पता की महान औषधि है। स्त्रियों की सभी लैंगिक समस्याओं के सारे उपचारों से सर्वश्रेष्ठ और सुरक्षित है अलसी। “व्हाई वी लव” और “ऐनाटॉमी ऑफ लव” की महान लेखिका, शोधकर्ता और चिंतक हेलन फिशर भी अलसी को प्रेम, काम-पिपासा और लैंगिक संसर्ग के लिए आवश्यक सभी रसायनों जैसे डोपामीन, नाइट्रिक ऑक्साइड, नोरइपिनेफ्रीन, ऑक्सिटोसिन, सीरोटोनिन, टेस्टोस्टिरोन और फेरोमोन्स का प्रमुख घटक मानती है।
• सबसे पहले तो अलसी आप और आपके जीवनसाथी की त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनायेगी। आपके केश काले, घने, मजबूत, चमकदार और रेशमी हो जायेंगे।
• अलसी आपकी देह को ऊर्जावान और मांसल बना देगी। शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी गहेगी, न क्रोध आयेगा और न कभी थकावट होगी। मन शांत, सकारात्मक और दिव्य हो जायेगा।
• अलसी में ओमेगा-3 फैट, आर्जिनीन, लिगनेन, सेलेनियम, जिंक और मेगनीशियम होते हैं जो स्त्री हार्मोन्स, टेस्टोस्टिरोन और फेरोमोन्स ( आकर्षण के हार्मोन) के निर्माण के मूलभूत घटक हैं। टेस्टोस्टिरोन आपकी कामेच्छा को चरम स्तर पर रखता है।
• अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैट और लिगनेन जननेन्द्रियों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाती हैं, जिससे कामोत्तेजना बढ़ती है।
• इसके अलावा ये शिथिल पड़ी क्षतिग्रस्त नाड़ियों का कायाकल्प करती हैं जिससे मस्तिष्क और जननेन्द्रियों के बीच सूचनाओं एवं संवेदनाओं का प्रवाह दुरुस्त हो जाता है। नाड़ियों को स्वस्थ रखने में अलसी में विद्यमान लेसीथिन, विटामिन बी ग्रुप, बीटा केरोटीन, फोलेट, कॉपर आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इस तरह आपने देखा कि अलसी के सेवन से कैसे प्रेम और यौवन की रासलीला सजती है, दिव्य सम्भोग का दौर चलता है, देह के सारे चक्र खुल जाते हैं, पूरे शरीर में दैविक ऊर्जा का प्रवाह होता है और सम्भोग एक यांत्रिक क्रीड़ा न रह कर शिव और उमा की रति-क्रीड़ा का उत्सव बन जाता है, समाधि का रूप बन जाता है।